मकर संक्रांति पर्व -भौगोलिक एवं सांस्कृतिक समायोजन दर्शन का उदाहरण
👉
- आज मकर संक्रांति का पर्व है।
- हम मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं?
- मकर संक्रांति का भौगोलिक पक्ष?
- भारतीय सांस्कृतिक दर्शन मकर संक्रांति का महत्व?
भारतीय संस्कृति का दर्शन जिसको हम सनातन संस्कृति दर्शन भी कहते हैं सदैव प्रकृति उपासक रहा है।
इसी प्रकृति उपासना में -
- पिछले लगभग 5000 वर्षों के अधिक कालखंड से हम नवग्रह का पूजन करते आ रहे हैं
- अर्थात हमारे पास 5000 वर्ष के पहले से भी पूर्व ब्रह्मांड का ज्ञान एवं उसकी गणना है,और
- वह गणना आज भी एक-एक सेकंड अर्थात पल के आधार पर सटीक होती है।
उसी के एक उदाहरण के रूप में आज प्रयागराज कुंभ मे प्रथम महा स्नान है और हम जानते हैं कल पूर्णमासी के दिवस से कुंभ मेले का श्री गणेश हो चुका है और प्रथम महा स्नान “मकर संक्रांति” का रहता है।
- कुंभ मेला का आयोजन बृहस्पति ग्रह की परिक्रमा के आधार पर निर्धारित होता है
- क्योंकि वह 12 वर्ष में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करते हैं
- इसलिए 12 वर्ष के अंतराल पर किसी एक निश्चित स्थान के संदर्भ में कुंभ का आयोजन किया जाता है।
- इस प्रकार हमें ज्ञान है कि भारत के चार प्रमुख नगर प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक पर तीन तीन वर्ष के अंतराल पर कुंभ का आयोजन होता है।
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आज मकर संक्रांति का पर्व भी सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की इसी गणना एवं उसके परिक्रमा पर आधारित है।
यदि हम -
- पृथ्वी की स्थिति उसके अक्ष झुकाव पर, एवं
- उसके परिक्रमा की गणना सूर्य के सापेक्ष करें
- तब ध्यान में आता है कि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण सूर्य की 6 महीने स्थिति दक्षिणी गोलार्ध में, एवं
- 6 महीने की स्थिति उत्तरी गोलार्ध में रहती है।
- जब सूर्य दक्षिणायन हो जाते हैं तब उतरी गोलार्ध में शरद ऋतु एवं शीत ऋतु का आगमन होता है, और
- अब हम समझ गए कि आज के दिन के बाद से भारत में ताप /गर्मी धीरे-धीरे बढ़ती चली जाएगी, एवं
- मार्च के महीने के उत्तरायण में भारत में ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाएगा।
ऐसा क्यों होता है क्योंकि -
- अब सूर्य की स्थिति दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में स्थानांतरित हो रही है।
हमको ज्ञात है कि -
- हमने विश्व को कर्क रेखा और मकर रेखा की गणना
- पृथ्वी के अक्षीय झुकाव, और
- उसके परिणाम स्वरुप सूर्य के द्वारा पृथ्वी पर पड़ने वाली लंबवत एवं तीव्र किरणों के कारण दी है।
अब, उपरोक्त क्षेत्र के अनुसार,-
- उत्तरी गोलार्ध एवं उत्तरी ध्रुव का झुकाव सूर्य के निकट धीरे-धीरे हो रहा है
- जो की 21 जून के आसपास अपनी चरम स्थिति पर होगा, और
- हम जानते हैं कि इस समय भारत में तीव्र गर्मी भी पढ़ रही होगी
- क्योंकि अक्षीय झुकाव के परिणाम स्वरूप उत्तरी ध्रुव सूर्य से अपने निकटतम दूरी पर एवं उत्तरी गोलार्ध लंबवत तीव्र किरणों ग्रहण कर रहा होगा।
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ज्योतिष कि गणना के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व इस लिए मनाते हैं क्योंकि अब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं।
जबकि यदि भौगोलिक पक्ष की बात करते हैं तो -
- क्योंकि सूर्य अब मकर रेखा से विषुवत रेखा एवं कर्क रेखा की ओर प्रस्थान कर रहे हैं
- इस कारण से अब आज के दिवस के बाद उत्तरी गोलार्ध में सूर्य का ताप धीरे-धीरे बढ़ता रहेगा
- इसलिए आप अनुभव करेंगे कि अब दिन के समय कोहरे की स्थिति सामान्य हो जाएगी तथा धूप खिलकर निकलेगी।
क्योंकि -
- राजा के आने से पहले उसकी सेना और उसका प्रभाव उस स्थान पर पहले पहुंचता है,
- सूर्य 21 मार्च को विषुवत रेखा पर आएंगे,
- किंतु उनका ताप उससे पहले ही उत्तरी गोलार्ध में आना प्रारंभ हो गया है
- इसलिए इसको मकर संक्रांति कहते हैं –
“संक्रांत अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान का परिवर्तन या एक दशा से दूसरे दशा का परिवर्तन” अंग्रेजी भाषा में इसके लिए Transition शब्द का प्रयोग किया जाता है।
अब भारतीय दर्शन किस प्रकार से अपने आप को प्रकृति से जोड़ता है उसके कुछ उदाहरणों पर दृष्टिपात करते हैं।
तो भौगोलिक पक्ष के अनुसार -
- अब चुकि ताप में निरंतर वृद्धि होगी
- इस कारण से वायुदाब में परिवर्तन होगा एवं
- पवने उत्तर गोलार्ध या उत्तरगामी हो जाएगी।
- परिणाम स्वरुप हिंद महासागर का तापमान बढ़ेगा
- अप्रैल से वहां पर तीव्र वाष्पीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ होगी, और
- जून से भारतीय उपमहाद्वीप प्रमुख रूप से भारतीय धरती पर मानसून का आगमन होगा
क्योंकि -
- ताप बढ़ने के साथ-साथ वायुदाब में व्युत्क्रम अनुपात में कमी आती है, और
- यदि हम पवन की परिभाषा का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि - "पवन वायु का वह संचरण रूप है जिसमें वह क्षैतिज स्तर पर अधिक वायुदाब के क्षेत्र से कम वायुदाब के क्षेत्र की ओर संचरण करती है।"
अर्थात सूर्य दक्षिण की स्थिति का त्याग करेंगे इस कारण से दक्षिण में अब अधिक वायुदाब तथा उत्तरी गोलार्ध में कम वायुदाब का अंतर प्रवणता देखने को मिलती है।
यही कारण है कि -
- मानसून का आगमन दक्षिण की ओर से होता है
- इसलिए हम इसको दक्षिण पश्चिम मानसून कहते हैं
- जिसमें जब यह उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करेंगे तो पश्चिम दिशा से भारत में इनका आगमन होगा।
ताप वृद्धि के साथ-
- वनस्पति अपने बिस्तर को प्राप्त करेगी
- अब बसंत ऋतु का आगमन होगा, और
- पेड़ों पर नई कोपले आएंगे
- पतझड़ के आगमन के साथ पेड़ पौधे अपने पत्तों का त्याग करके नए वस्त्र के समान नए पत्ते धारण करेंगे।
- सूर्य के विषुवत रेखा पर आने के साथ चैत्र नवरात्रों का प्रारंभ होगा, और
- इस प्रकार से सनातन धर्म के नव वर्ष का भी प्रारंभ होगा।
एक निश्चित तिथि किसी पर्व के संबंध में निर्धारित न होने का सीधा सा कारण यह है कि-
- हम भौगोलिक गणना के अनुसार अपने जीवन को अपने धर्म को एवं संस्कृति को जीते हैं
- इसलिए हम रात के 12:00 बजे सर्दियों में शोर नहीं मचाएंगे
- जब संपूर्ण वनस्पति विश्राम कर रही होगी
- क्योंकि हमारे यहां एक सिद्ध सिद्धांत है कि संध्या काल के पश्चात वृक्ष/वनस्पति को छूना नहीं है यहां तक कि उनको पानी भी नहीं देना है
- क्योंकि वह इस समय निद्रा अवस्था में है
- तो रात के 12:00 Am मध्य रात्रि के समय क्यों ध्वनि प्रदूषण करके हम मनुष्य को शुभकामनाएं देते हुए वनस्पति को व्यवधान देते हैं।
अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति के भिन्न-भिन्न नाम है-
- पश्चिम बंगाल - पोश पर्व
- केरला - मकारा विलक्कू
- बिहार एवं झारखंड - संकरात
- असम - माघ बिहू या भोगली बिहू
- तमिलनाडु - पोंगल
- गुजरात - उत्तरायण
- उत्तराखंड - उत्तरायणी
- कर्नाटक - एलू विरोधु
यह दर्शाता है भारतीय संस्कृति की विविधता एवं उसकी संपन्नता को।
और इस प्रकार हम सोच पाते हैं कि-
- भारतीय विज्ञान सनातन संस्कृति के अनुसार
- वर्ष को सूर्य की गणना के आधार पर दो भागों में उत्तरायण एवं दक्षिणायन, तथा
- चंद्रमा की गति के आधार पर शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है।
हम सभी को हमारे परिवारों के साथ मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
भारतीय संस्कृति एकमात्र संस्कृति है जो -
- प्रकृति उपासक है, और
- अपनी भूमि को मां कहती है
- विश्व में ऐसी कोई दूसरी संस्कृति या धर्म नहीं है।
और हो भी नहीं सकता क्योंकि -
- वहां पर व्यक्तिगत संप्रभुता नहीं है, क्योंकि
- वहां पर क्रमशः दो शब्द हैं “का#फि+र” एवं “He#at@h+en ??
धन्यवाद।
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