विश्व के नागरिया आवास में उष्मा/ तप्त स्थल द्वीप बनने के कारण बताइए। [2013]

 

क्या होगी रणनीति भूगोल GS + वैकल्पिक विषय की ?  

इस प्रश्न में यदि प्रश्न की भाषा पर ध्यान दें तो प्रश्न प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है-



  1. वैश्विक स्तर पर
  2. आवाज की परिभाषा तथा उसकी समझ
  3. आवास की समझ प्राकृतिक परिवेश के संदर्भ में अर्थात मनुष्य सहित पारिस्थितिकी तंत्र की समझ उत्तर देते समय हमको रखनी होगी।
  4. समस्या वैश्विक स्तर की है स्थानीय या आंचलिक स्तर की नहीं।
  5. कारण की व्याख्या मांगी गई है समाधान नहीं।

 

अब यदि बिंदुसार प्रश्न की व्याख्या करें तो "भौगोलिक परिभाषा के अनुसार द्वीप एक स्थल स्थान है जो कि चारों ओर से जल्द से घिरा हुआ है।"

जब यहां पर तप्त स्थल दीप की बात करी जाती है तब =

  • आश्रय एक ऐसे भूमि खंड से है जो हमें वातावरण में चिन्हित करना है जो कि अपने चारों ओर के प्राकृतिक वातावरण एवं उसके पारिस्थितिकी तंत्र से घिरा हुआ है, 
  • लेकिन उसका तापमान असामान्य रूप से अधिक है।
  • अर्थात तापमान के आधार पर उसके क्षेत्र का पृथक्करण ही उसे द्वीप की परिभाषा में लाता हैं ।

 क्योंकि- 

  • जैसा हमने कहा द्वीप भूगोल परिभाषा के अनुसार चारों ओर से जल राशि से घिरा एक स्थल खंड है यहां पर ऊष्मा द्वीप एक ऐसा स्थान है जिसका तापमान अपने चारों ओर के स्थान से अधिक है और 
  • जो चारों ओर का स्थान है वह स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर की ओर चलते हुए अपने प्राकृतिक वातावरण से घेरा हुआ है।
  • तो ऐसे कौन से कारण होंगे जो इस तप्त स्थल द्वीप का निर्माण करते हैं यही संबंधित व्याख्या इस प्रश्न के उत्तर में करनी है।

NCERT-भूगोल-कक्षा-06-अध्याय

 

तो यदि उत्तर की संरचना पर ध्यान दें तो संरचना में निम्नलिखित चरण क्रमबद्ध प्रक्रिया में होंगे-

  • द्वीप की परिभाषा
  • आवास का संदर्भ देते हुए ऊष्मा तप्त स्थल दीप की परिभाषा देते हुए उसको समझाना।
  • ऊष्मा द्वीप के बनने के कारणों का उल्लेख।
  • समाधान एवं निष्कर्ष।

ध्यान दें- उत्तर की शब्द सीमा के आधार पर या तो निष्कर्ष समाधान के साथ ही दिया जा सकता है और यदि शब्द सीमा की संख्या अधिक है तब अंत में समाधान से अलग निष्कर्ष दिया जा सकता है।


👉उत्तर 👀

 

     भूगोल की परिभाषा के अनुसार द्वीप एक ऐसा स्थल खंड है जो अपने चारों ओर से जल राशि से गिरा हुआ रहता है क्योंकि प्रश्न ऊष्मा द्वीप के संदर्भ में है तो यह ऐसी इकाई है जहां पर एक निश्चित भूमि खंड का तापमान अपने निकटवर्ती चारों ओर के प्राकृतिक आवासीय तापमान की तुलना में अधिक है और इस प्रकार इस पृथक्करण के आधार पर ही आधुनिक शब्दावली में इसको "ऊष्मा तप्त स्थल दीप" से संबंधित किया गया है।



   यदि हम पृथ्वी के उष्ण बजट का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि जितनी ऊष्मा पृथ्वी पर आती है ह चक्रीय प्रकिया का अनुसरण करते हुए पृथ्वी स्थल से निष्कासित भी हो जाती है।

    प्राकृतिक चक्रीय व्यवस्था में ऊष्मा आवश्यकता से अधिक पृथ्वी की सतह में और उसके वायुमंडल में जब मिलती है तो इसे ही वायुमंडल तापीयकरण होना कहते हैं।



उष्मा द्वीप का निर्माण पूर्ण रूप से मानव जनित कर्म का परिणाम है जिनको दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष।

प्रत्यक्ष कारण समूह में-


👀प्रत्यक्ष कारण-

1. असंगत वनोन्मूलन जहां नीति का उद्देश्य प्राथमिक रूप से नवीन नगरीय संरचना को स्थापित करना है

2. निर्माण कार्यों में असंगत रूप से धूल के कणों का उत्पन्न होना जो कि अधिक ऊष्मा का अवशोषण शोषण करेंगे।

3. अट्टालिका का निर्माण सामग्री जैसे की सीमेंट, एस्फाल्ट तथा कंक्रीट का उपयोग जो की अत्यधिक ऊष्माग्रही पदार्थ है।

4. इसके साथ ही इस सामग्री का चरित्र अगम्य है अर्थात जो ऊष्मा आती है वह इसी में बंध कर रह जाती है और उसका विकिरण उचित प्रक्रिया के माध्यम से नहीं हो पता जो कारण बनता है रात्रि कल में ऊष्मा विकिरण चक्र को बाधित करने का।


👀अप्रत्यक्ष कारण-

5. नगरियकरण निर्माण प्रक्रिया में पृथ्वी की सतह पर अधिक निर्माण सामग्री का उपयोग उसकी जलीय चक्र को बाधित करता है परिणामस्वरूप में वाष्पन कि दर गैर आनुपातिक रूप से अधिक होकर मिट्टी को शुष्क करती है जो की ताप का अधिक अवशोषण करेगी।

6. इसी प्रक्रिया में आनुपातिक रूप से अधिक छाया क्षेत्र का ह्रास होना तथा इसकी क्षतिपूर्ति समाज के द्वारा ना होना एक अन्य कारण बनता है।

7. उच्च अट्टालिका का निर्माण में एक निश्चित भूमि क्षेत्र पर उसकी गुणात्मक सतह बनकर तैयार होती है यह भी अधिक ऊष्मा का अवशोषण उस क्षेत्र इकाई की तुलना में करती है।

8. नवीन अट्टालिका का निर्माण में अधिक कांच का प्रयोग होता है जो कि सूर्य से ऊष्मा प्रकाश को प्राप्त कर सतह चिकनी होने के कारण उसका परावर्तन निकटवर्ती अट्टालिकाओं पर करती है जो की ताप के प्रभाव को बढ़ाता है।

 

9. अन्य कारणो में पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश एवं अधिक प्रदूषण तप्त स्थल के कारण बनते हैं।


👀अब यदि समाधान पर चर्चा करें तो- 

1. उपरोक्त कारणों का विषय संगत समाधान उनको न्यूनतम करके अथवा समाप्त करके किया जा सकता है।

2. लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण समाधान पर्यावरणीय अध्ययन, जो की सतत विकास उन्मुख होना चाहिए, हमारी शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक शिक्षा नीति के प्रत्येक चरण में होना चाहिए।

3. इसके साथ ही सामाजिक संगठनों के दायित्व का एक भार सतत पर्यावरण विकास का होना चाहिए जो कि "समुदाय संवाद" के माध्यम से समाज को वर्तमान तथा भविष्य के दृष्टिकोण से परिचित करवाए कि नकारात्मकता विध्वंस का कारण हो सकती है।

अंत में निष्कर्ष यही निकलता है कि यदि समस्या मानव जनित कर्म से है तो मानव को ही इसका समाधान अपने कर्म के माध्यम से करना होगा। प्रकृति के किसी अन्य घटक का इसमें दोष नहीं है इसलिए समाधान केवल और केवल मनुष्य प्रजाति के द्वारा ही आएगा।

 धन्यवाद।





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