NCERT-भूगोल-कक्षा-07-अध्याय-03

 

प्रधान शब्दावली

 

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अध्याय- 01

अध्याय- 02


स्थल मंडल/ Lithosphere


पृथ्वी की ऊपरी सतह जोकि ठोस है जिस की संरचना भंगुर है तथा जो कि लगभग 100 किलोमीटर मोटी है स्थलमंडल कहलाता है।

स्थलमंडल की संरचना में दो घटक है -

1.    पृथ्वी की ठोस सतह तथा 

2.    पृथ्वी की आंतरिक संरचना है पाए जाने वाले प्रवार भाग की ऊपरी ठोस परत।

यह दोनों मिलकर लगभग 100 किलोमीटर मोटे स्थल मंडल का निर्माण करती हैं।

 

स्थल मंडल प्लेट



  • पृथ्वी का स्थलमंडल अनेक स्थानों पर खंडित है तथा प्रत्येक पृथक खंडित भाग को प्लेट कहा जाता है।
  • वर्तमान में पृथ्वी पर लगभग 7 वृहद प्लेट एवं 150 के लगभग छोटी प्लेट्स है।
  • यह 7 प्लेट्स आकार निम्नलिखित हैं

01-  प्रशांत महासागर

02-  प्लेट उत्तरी अमेरिका प्लेट

03-  यूरेशियन प्लेट

04-  अफ्रीका प्लेट

05-  अंटार्कटिका प्लेट

06-  भारत ऑस्ट्रेलिया प्लेट तथा

07-  दक्षिणी अमेरिका प्लेट।

 

अंतर जनित बल

  • जैसा कि हम अध्ययन कर चुके हैं पृथ्वी की आंतरिक संरचना में विभिन्न संकेंद्रित परत मिलती हैं जोकि पृथ्वी की आंतरिक संरचना में मिलने वाली विभिन्नता का परिणाम है।
  • यह विभिन्नता- 
  1. खनिज एवं धातु तत्व की विभिन्नता,
  2. उनके अनुपातिक, ताप एवं घनत्व तथा 
  3. पृथ्वी के घूर्णन के द्वारा लगने वाले अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) बल के परिणाम से मिलती है।
  • परिणाम स्वरूप पृथ्वी आंतरिक रुप से एक सजीव इकाई के समान कार्य करती है तथा ऊर्जा का स्थानांतरण करती रहती है।
  • इसी ऊर्जा के स्थानांतरण के परिणाम स्वरूप वह बल, जो कि पृथ्वी के आंतरिक संरचना से पृथ्वी की सतह पर लगते हैं, अंतर जनित बल कहलाते हैं।
  • अंतर जनित बल को निर्माण कारी बल भी कहते हैं क्योंकि इनकी क्रियाशीलता के परिणाम स्वरूप ही पृथ्वी पर स्थलमंडल तथा विभिन्न स्थल आकृतियों का निर्माण होता है।


बाह्य जनित बल/ Exogenic Force

  • वह बल जोकि पृथ्वी के सतह पर उसके पर्यावरण द्वारा आरोपित होते हैं बाह्य जनित बल कहलाते हैं।
  • बाह्यजनित बल को विध्वंस कारी बल भी कहते हैं क्योंकि इस बल के आरोपित होने पर स्थलाकृति खंडित होती है।

 

ज्वालामुखी/ Volcanos

  • भूपर्पटी पर जब एक छिद्र के माध्यम से पृथ्वी की आंतरिक संरचना में से पिघला हुआ मैग्मा  विस्फोट के साथ पृथ्वी की सतह पर आता है तब इस घटना को ज्वालामुखी कहते हैं।



 

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भूकंप/ Earthquake

  • पृथ्वी आंतरिक रूप से एक क्रियाशील इकाई है परिणाम स्वरूप वह निरंतर अपनी आंतरिक ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने के लिए क्रियाशील रहती है।
  • इसी क्रियाशीलता के कारण जब स्थलमंडल की प्लेट परस्पर घर्षण करती हैं तब कंपन उत्पन्न होता है।
  • इस भगौली घटना को भूकंप कहते हैं।




भूकंप उद्गम केंद्र (Hypo Centre)

  • पृथ्वी के स्थल मंडल में वह केंद्र जहां से भूकंप उत्पन्न होता है उद्गम केंद्र Hypo Centre कहलाता है।

 

भूकंप अधिकेंद्र (Epi Centre)

  • उद्गम केंद्र के ऊर्ध्वाधर पृथ्वी की सतह पर वह केंद्र जहां भूकंप की तरंगे सर्वप्रथम उत्पन्न होती है भूकंप अधिकेंद्र (Epi Centre) कहलाता है।

 

भूकंप तरंगे एवं उनके प्रकार

  • अधिकेंद्र से भूकंप, तरंगों के माध्यम से कंपन करता हुआ, पृथ्वी की सतह में फैलता है जिन्हें भूकंप तरंगे कहते हैं।
  • भूकंप की तरंगी तीन प्रकार की होती हैं।
  1. पी तरंग अर्थात अनुदैर्ध्य तरंगे  (P- WAVES) भूकंप की स्थिति में यह तरंगे सर्वप्रथम उत्पन्न होती हैं इनकी गति सर्वाधिक लगभग 8 किलोमीट प्रति सेकंड तथा यह ठोस एवं तरल दोनों ही माध्यमों में चल सकती है। 
  2. एस तरंग अर्थात अनुप्रस्थ तरंग (S- WAVES) इन तरंगों की गति लगभग 5 किलोमीटर प्रति सेकेंड की होती है तथा यह तरंगे केवल ठोस माध्यम में ही चलती है
  3. एल तरंग अर्थात पृष्ठीय तरंग   (L- WAVES) अंत में उत्पन्न होने वाली यह तरंगे केवल सतह पर ही उत्पन्न होती हैं तथा इनकी गति लगभग 1.5 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है।
  • यह तरंगे सर्वाधिक विनाशकारी होती है।

 

अपक्षय एवं अपरदन/ Weathering & Erosion

  • अपक्षय की प्रक्रिया बाह्य जनहित बल का एक फल है। 
  • जिसके अंतर्गत 
  1. भौतिक 
  2. रसायनिक तथा 
  3. जैविक क्रिया के फल स्वरुप स्थलाकृति निरंतर विघटित होती रहती है तथा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में कमजोर होकर नीचे की ओर गिर जाती है।
  • अपरदन प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप विघटित हुई इन स्थल आकृतियों को 
  1. हिम 
  2. नदी 
  3. पवन 
  4. भूमि जल तथा 
  5. समुद्री जल के 
  • माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है।



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जलप्रपात/ Waterfall

  • किसी भी नदी के जीवन चक्र में तीन अवस्थाएं होती है 
  1. युवा अवस्था 
  2. मध्य अवस्था एवं 
  3. प्रोड़अवस्था
  • युवा अवस्था में नदी तीव्र ढलान के स्थान पर बहती है।
  • जलप्रपात बनाने की स्थिति में नदी एक तीव्र ढलान अर्थात लगभग ऊर्ध्वाधर स्थान से कठोर चट्टान शैल या ऊर्ध्वाधर ढाल वाली घाटी में गिरती है तब इस प्रकार के नदी दृश्य को जलप्रपात कहते हैं

विसार्प/ Meanders

  • तीव्र ढलान, पठार या पर्वत के स्थान से जब नदी मैदान में प्रवेश करती है अर्थात जब अपनी मध्य अवस्था  में आती है तब मैदानी क्षेत्र में नदी धारा अपना क्षैतिज विस्तार करती है।
  • इसका प्रमुख कारण 
  1. ढलान प्रवणता का कम होना एवं 
  2. अधिक समतल स्थान का मिलना है।
  • परिणाम स्वरूप अपरदन एवं निक्षेपण की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप मैदानी क्षेत्र में नदी विसर्प का निर्माण करती है।

विसार्प लूप/ Meander loop




  • नदी विसर्प बनने की प्रक्रिया में विसर्प का एक पूर्ण चक्र: विसरप लूप कहलाता है।

 

चाप झील/ Oxbow Lake



  • विसर्प बनने की प्रक्रिया में जब विसरप लूप के दोनों तटबंध अपरदन एवं निक्षेपण की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप परस्पर मिल जाते हैं तथा नदी विसर्प का मार्ग छोड़कर एक अन्य मार्ग के माध्यम से अपने आगे के पहले वाले मार्ग में जुड़ती है तब इस प्रकार छोड़ा गया विसर्प एक झील के रूप में परिवर्तित होता है।
  • चुकी यह चाप की आकृति के समान दिखाई देती है इसलिए इसे चाप झील कहते हैं।


अवसाद/ Sediments

  • पर्वतीय क्षेत्र से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करते समय ढाल प्रवक्ता कम होने के कारण नदी की प्रवाह गति धीमी हो जाती है।
  • परिणाम स्वरूप नदी पर्वतीय क्षेत्रों से जो अपने साथ 
  1. महीन मिट्टी के कारण एवं 
  2. अन्य पदार्थों को साथ लेकर आती है उनका निक्षेपण नदी के किनारों पर करती है जिन्हें नदी निक्षेपित अवसाद कहते हैं।

 

तटबंध/ Embankment

  • हम जानते हैं कि नदी प्रवाह के समय नदी के जल की गति मध्य में सर्वाधिक एवं नदी के किनारों की ओर बढ़ते हुए धीमी होती चली जाती है।
  • परिणाम स्वरूप नदी अपने किनारों पर निक्षेपण अधिक मात्रा में करती है।
  • नदी प्रवाह के समय जल की मात्रा अधिक होने पर अवसादो का निक्षेपण नदी के किनारों से निकटवर्ती क्षेत्रों में भी होता है तथा जल की मात्रा सामान्य होने पर निक्षेपित अवसादो का एकत्रीकरण नदी के किनारों पर उठी हुई भूमि के रूप में हो जाता हैजिसे नदी के तटबंध कहते हैं।
  • इसी कारण से आपने अनुभव किया होगा कि नदी के जल में यदि हम स्नान करने के लिए जाते हैं तो हमें उसके ऊपर उठे तटबंध अर्थात किनारो से नीचे नदी के पानी में उतरना होता है।


 


बाड़ कृत मैदान Flood Plains

  • वह स्थिति जब नदी प्रवाह मार्ग में आवश्यकता से अधिक जल उपलब्धता हो जाता है।
  • तब नदी का जल अपने तटबंध को तोड़ता हुआ निकटवर्ती स्थानों में प्रवेश करता है तथा जलभराव की स्थिति में अपने अवसादो को उन स्थानों में निक्षेपित करता है।
  • स्थिति सामान्य होने पर जल पुनः धीरे धीरे नदी में आकर मिल जाता है लेकिन अपने द्वारा निक्षेपित किए अवसादो को उसी स्थान पर छोड़ आता है।
  • और इस प्रकार निकटवर्ती स्थान में एक सपाट स्थलाकृति का निर्माण होता है जिसे बाढ़ के मैदान कहते हैं।

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वितरिका/ Distributaries

  • प्रौढ़ावस्था में जब नदी मैदानी क्षेत्रों को पार कर समुद्र के निकट पहुंचती है ऐसी स्थिति में उसकी डाल प्रवड़ता और अधिक अनुपात में कम होते हुए शून्य के निकट हो जाती है।
  • परिणाम स्वरूप अवसाद एवं जल की अधिक मात्रा का भार ना  सहने के कारण नदी अनेक धाराओं में विभाजित हो जाती है जिसे वितरिका कहते हैं।

 


डेल्टा/ Delta

  • समुंद्र के निकट पहुंचते हुए नदीधारा एवं इसकी वितरिका अवसादो का निक्षेपण करना प्रारंभ कर देती है।
  • परिणाम स्वरूप एक वृहद  क्षेत्र में बड़े स्तर पर अवसादी करण की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
  • अवसादों के इस संग्रह से एक नवीन स्थलाकृति का निर्माण होता है जोकि देखने में भौतिकी के चिन्ह डेल्टा के सामान दिखाई पड़ता है इसलिए इस स्थलाकृति को नदी का डेल्टा कहते हैं।

 

समुद्री गुफा  (Sea Cave)

  • हम जानते हैं कि समुद्र का जल सदैव गतिमान रहता है।
  • एवं गतिमान जल निरंतर अपरदन एवं निक्षेपण की क्रिया के फल स्वरुप विभिन्न प्रकार की तटीय स्थलाकृति बनाता है।
  • इसी प्रक्रिया में जब समुद्र का जल अपनी तरंगों के माध्यम से स्थल पर पड़े हुए चटाने से टकराता है तब उन पर तनाव उत्पन्न करता है एवं समय के साथ उन चट्टानों में एक दरार विकसित कर देता है।
  • निरंतर एक लंबे समय तक अंतराल से टकराने के कारण वह दरार एक गुफा में परिवर्तित हो जाती है जिसे समुद्री गुफा (Sea Cave) कहते हैं।
  • निरंतर एक लंबे समय तक अंतराल से टकराने के कारण वह दरार एक गुफा में परिवर्तित हो जाती है जिसे समुद्री गुफा सीके कहते हैं।

 

तटीय चाप (Sea Arch)

  • कालांतर में जब यह गुफा चट्टान के आर पार हो जाती है अर्थात वहां से समुंद्र का जल दूसरे किनारे पर पहुंचने लगता है तब इसे तटीय मेहरा कहते हैं।

 

स्टैक (Stack)

  • निरंतर समुद्र की लहरों के द्वारा अपरदन की क्रिया होते रहने के कारण जब तटीय मेहरा की छत को समुद्री जल तोड़ देता है तथा केवल समुद्री गुफा की दीवारें विशेष बस्ती है तब इस प्रकार की स्थलाकृति को स्टैक कहते हैं।

 

समुंद्र भ्रगु (Sea Cliff)

  • जब समुद्री तट के किनारे एक ऊंची पहाड़ी वाले होते हैंजिसका ढाल तीव्र होता है, इस प्रकार की स्थलाकृति को समुंद्री भ्रुगू कहते हैं।

 

समुंद्री पूलिन/ Sea Beach

  • समुद्र के किनारे निकटवर्ती क्षेत्रों में समुंद्र का जल तथा नदियां निरंतर अवसाद निक्षेपण की प्रक्रिया करती हैं परिणाम स्वरूप अवसाद से बनी एक नवीन स्थलाकृति का निर्माण होता है जिसे समुद्री पुलिन कहते हैं।

हिमनद/ Glaciers

  • पर्वतीय क्षेत्र जोकि वर्ष भर हिम अच्छादित होते हैं।

    तब हिम अच्छादित इस प्रकार की हिम स्थलाकृति को हिमनद कहते हैं।

 

हिमनद हिमोड़/ Glacier Moraine

  • हिमनद अंदर की ओर से अर्थात नीचे की ओर से कठोर चट्टानों की सतह पर मिट्टी तथा पत्थरों का अपरदन करते हैं।
  • अपरदन की प्रक्रिया में हिम के द्वारा लाए गए छोटे अथवा बड़े आकार के पत्थर कंकड़ रेट तथा तल छोटी मिट्टी का निक्षेपित संग्रह हिमनद हिमोढ़ कहलाता है।

 

छत्रक शैल/ Mushroom Rocks

  • मरुस्थलीय क्षेत्रों में अपरदन एवं निक्षेपण की क्रिया पवन के द्वारा की जाती है।
  • मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन की विशेषता है कि वह किसी चट्टान के ऊपरी भाग की अपेक्षा निचले भाग का अपरदन सुगमता से करती है परिणाम स्वरूप वह शैल कालांतर में एक छत्रक का आकार ले लेता है जिसे छत्रक शैल कहते हैं जिसमें शैल का आधार भाग संकीर्ण तथा शीर्ष भाग विस्तृत रूप लिए होता है।


 


बालू डिब्बा/ Sand Dunes

  • मरुस्थली क्षेत्रों में पवन चलते समय अपने साथ बड़ी मात्रा में बालू का अपरदन कर दी है तथा पवन का बहाव रुकते ही यह एक निश्चित स्थान पर बालू का निक्षेपण करती है।
  • निक्षेपण किस क्रिया के परिणाम स्वरूप बालू गिर गए एक छोटी पहाड़ी बनाता है जिसे बालू टिब्बा कहते हैं।


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लोएस/ Loess

  • मरुस्थलीय क्षेत्र में बड़ी मात्रा में पवन के साथ बालू का बहना 
  1. बालू के कण की आकृति एवं 
  2. उसके भार पर भी निर्भर करताहैं। 
  • इसी प्रक्रिया में यदि 
  1. बालू के कणआकार में छोटे एवं 
  2. भार में हल्के होते हैं तब वायु के द्वारा उनका अपरदन दूर के क्षेत्र तक किया जाहैं। 
  • जब पवन के ही द्वारा इनका निक्षेपण एक विशेष क्षेत्र में होता है तब एक नवीन प्रकार की मरुस्थलीय स्थलाकृति बनती है जिसे लोएस कहते हैं।



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