NCERT-राज्य व्यवस्था-कक्षा-6-अध्याय-03

 

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प्रमुख शब्दावलिया/ Main Terminologies 


सरकार के कार्य

लोक कल्याण अभिवृद्धि के कार्य करते हुए सरकार 3 मार्ग का अनुसरण करती है

  1. प्रथम नियम मार्ग अर्थात साधारण कार्य,
  2. द्वितीय विनियम माध्यम अर्थात असाधारण कार्य यह विशेष परिस्थिति जनक कार्य,
  3. तृतीय आकस्मिक अथवा आपातकालीन स्थिति जनक कार्य।

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सरकार के कार्य स्तर

मुल्त: सरकार की तीन कार्य स्तर होते हैं एवं लोकतांत्रिक पदानुक्रम (Hierarchy) का अनुसरण करते हुए भारत में सरकार- 

  1. राष्ट्रीय स्तर 
  2. राज्य स्तर तथा 
  3. स्थानीय स्तर पर सरकार कार्य करती है

सरकार के लिए विधि व्यवस्था का महत्व


विधि व्यवस्था के अंतर्गत सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विशेष परिस्थितियों को संबोधित किया जाता है जिससे समाधान निकाल सके।


सरकार विधि (कानून) बनाती है जिसका उद्देश्य -

  1. विशेष परिस्थितियों के संदर्भ में विनियमन (Regulation) बनाकर 
  2. विधि व्यवस्था के उपबंधो (Provision) को लागू करना है।

उदाहरण के लिए- 

  1. भारत में विधि का शासन है जिसके अंतर्गत सब विधि के समक्ष समान है किंतु यदि ऐसा है तो प्रत्येक -
  2. ट्रेन की पहले यान (Coach) को दिव्यांगों के लिए तथा 
  3. दिल्ली मेट्रो की प्रथम यान को महिलाओं के लिए आरक्षित क्यों किया गया है?

क्योंकि आवश्यकता इस वर्ग विशेष को समानता के स्तर पर लाने की है। -

  1. दिव्यांग व्यक्ति के लिए ट्रेन की यात्रा करना सामान्य व्यक्ति की तुलना में एक कठिन कार्य है 
  2. इस कारण से विशेष प्रावधान करके उसके असमानता को समान बनाने का प्रयास किया गया है।

दिल्ली में नारी सुरक्षा एक प्रमुख विषय है तथा इसी को ध्यान में रखते हुए- 

  1. यदि किसी महिला को असुरक्षा की भावना होती है तो 
  2. प्रथम यान सुरक्षा की दृष्टिकोण से महिलाओं के लिए दिल्ली मेट्रो में आरक्षित किया गया।

ध्यान देने वाली बात यह है कि -

  1. 02 आसमान वर्गों के लिए विशेष प्रावधान 
  2. 02 आसमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया और 
  3. उल्लंघन की दृष्टि में उसे विनियमन के माध्यम से क्रियान्वित करवाया जाता है एवं 
  4. उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान किया जाता है


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सरकार के प्रकार

  1. लोकतांत्रिक (Democratic ) सरकार 
  2. प्रजातांत्रिक/राजशाही (Monachyसरकार 
  3. साम्यवादी (Communism) सरकार।

लोकतांत्रिक सरकार में सरकार के गठन अर्थात सरकार को बनाना एवं सरकार के विघटन अर्थात सरकार को हटाने की शक्ति जनता के पास उसके मताधिकार के माध्यम से होती है इस प्रकार लोकतंत्र में लोग ही वास्तव में सरकार की शक्ति है

लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सरकार को उत्तरदाई सरकार (Responsible government) भी कहते हैं क्योंकि - 

  1. सरकार, अपनी मंत्री परिषद के माध्यम से, विधायिका के निम्न सदन के प्रति उत्तरदाई होती है तथा 
  2. जनप्रतिनिधियों के माध्यम से प्रश्न काल में जो भी प्रश्न पूछे जाते हैं सरकार को उन प्रश्नों का उत्तर देना आवश्यक है, इसके साथ ही
  3. एक निश्चित समय अंतराल के पश्चात सरकार चुनाव के माध्यम से लोगों के बीच जाती है तथा 
  4. अपने किए गए कार्य का विवरण उनके समक्ष प्रस्तुत कर अगले चुनाव के लिए समर्थन मांगती है।

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लोकतांत्रिक सरकार के प्रकार एवं उसकी परिभाषा

लोकतांत्रिक प्रकार सरकार 02 प्रकार की होती है -



  1. प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक तथा 
  2. अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक।

प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक सरकार में -

  1. जनता प्रत्यक्ष रूप से कार्यपालिका (सरकार) गठन की प्रक्रिया में कार्यपालिका को चलाती है 
  2. क्योंकि यदि सरकार इच्छा अनुरूप कार्य नहीं कर रही है तब 
  3. जनमतसंग्रह प्रावधान (Referendum ) का उपयोग कर सरकार का किसी भी समय विघटन अर्थात अपदस्थ किया जा सकता है। 
  4. इस प्रकार प्रत्यक्ष लोकतंत्र में, सामान्यतः, एक निश्चित कार्यकाल का प्रावधान नहीं होता एवं 
  5. कार्यपालिका सदैव जनमत के दबाव में कार्य करती है 
इसलिए आपने देखा होगा प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक देश की सरकार की अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में अप्रभावी है 
  1. जिस कारण से समय के साथ वैश्विक व्यवस्था पर प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक देश का प्रभाव शून्य के समान है।

अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार की कार्यपालिका का गठन करती है।

  1. इस शासन व्यवस्था में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति जनता के पास ही होती है।
  2. किंतु सरकार (कार्यपालिका) का गठन एक निश्चित समय के लिए होता है तथा सरकार का गठन तथा विघटन जनप्रतिनिधियों के माध्यम से होता है।

उदाहरण के लिए भारतीय संविधान के प्रस्तावना ही यह उद्घोष करती है कि हम भारत के लोग इस संविधान को आत्मसात तथा अंगीकृत करते हैं।

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राजतंत्रीय सरकार


यह सरकार -

  1. एक उत्तरदाई सरकार का उदाहरण नहीं है 
  2. इसका मूल कारण चुकी निर्णय लेने लेने की अंतिम शक्ति राजा अथवा रानी के पास है।
  3. इस प्रकार की सरकार में राज्य प्रमुख का चयन जनता के द्वारा ना होकर वंश परंपरा के आधार पर या अन्य किसी परंपरा के आधार पर किया जाता है।
  4. एक बार चयनित होने पर अनिश्चितकाल के लिए वह सरकार प्रमुख के पद पर आसीन रहता है।
  5. इस व्यवस्था में शासन प्रमुख के पास परामर्शदाता का एक छोटा सा समूह होता है तथा समस्त विषयों पर चर्चा इस समूह के द्वारा ही होती है।
  6. यहां राज्य प्रमुख को अपने लिए गए निर्णय की रपट या विवरण जनता के समक्ष प्रस्तुत नहीं करनी होती है यदि राज्य प्रमुख के द्वारा ऐसा किया भी जाता है तो वह अपनी विवेकाधीन शक्ति के अंतर्गत ऐसा करेगा ना की विधि व्यवस्था के अंतर्गत।
  7. राजशाही शासन व्यवस्था में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति राजा में निहित होती है।
  8. इन तीनों पक्ष को ध्यान में रखकर इस प्रकार की सरकार को गैर उत्तरदाई सरकार कहा जाता है।

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लोकतंत्र का मूल विचार


लोकतंत्र का मूल विचार उस शासन प्रणाली से जहां निर्णय की सहभागिता एवं विधि निर्माण लोगों के द्वारा ही होता है।

अर्थात प्रजातांत्रिक व्यवस्था के विपरीत लोकतांत्रिक व्यवस्था जनमानस की सहभागिता सुनिश्चित कर क्रियान्वित होती है।

उदाहरण के लिए अभी कुछ समय पहले केंद्र सरकार के द्वारा जो "समान नागरिक संहिता Uniform Civil Code (UCC)" का प्रारूप तैयार किया गया है उसे अब जनता के समक्ष उनके विचारों एवं सुझाव देने के लिए प्रस्तुत किया गया है और हम जानते हैं प्रत्येक नीति निर्माण तथा विधि निर्माण में समाज के बौद्धिक वर्ग द्वारा सुझाव संशोधन के माध्यम से भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में समायोजित होते आए हैं।

 

प्रश्न: भारत के स्वतंत्रता पूर्व संवैधानिक इतिहास में प्रथम चुनाव कब हुआ और क्या वह एक लोकतांत्रिक चुनाव था?



भारतीय संवैधानिक इतिहास में चुनाव का प्रथम प्रावधान "भारतीय परिषद अधिनियम 1892" के द्वारा किया गया जब प्रांत की विधायिका में अतिरिक्त सदस्य अब नामित ना होकर निर्वाचित होकर आने का प्रावधान किया गया। इसके अंतर्गत-

  1. चेंबर ऑफ कॉमर्स
  2. जिला बोर्ड
  3. जमींदार वर्ग
  4. विश्वविद्यालय
  5. नगर निगम है

से निर्वाचन के माध्यम से चुनकर सदस्य अब प्रांत की विधायिका में बैठेंगे।

लेकिन यद्यपि यह अत्यधिक सकारात्मक तथा प्रतिनिधित्व शासन की दिशा में पहले पद था जो की स्वागत योग्य प्रावधान किंतु यदि लोकतांत्रिक व्यवस्था की परिभाषा इसका अध्ययन किया जाए तो इसका चरित्र निर्वाचित चरित्र लोकतंत्रात्मक प्रणाली के द्वारा नहीं था क्योंकि एक संगठन विशेष के लोगों की प्रांतीय सभा के प्रतिनिधियों को चुनकर भेज रहे थे जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में प्रांतीय विधायक के सदस्य का निर्वाचन जनता के द्वारा होना चाहिए। इस प्रकार इस चुनाव का चरित्र लोकतंत्र आत्मक नहीं था किंतु चुनाव स्वयं में लोकतांत्रिक प्रणाली का श्री गणेश था।

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प्रश्न: सफ्रेज आंदोलन / Suffrage Movement ?

लोकतंत्र का सर्वाधिक प्रमुख घटक "(सार्वभौमिक मताधिकार universal voting right)" होता है।

उदाहरण के लिए भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत आधिकारिक रूप से 18 वर्ष आयु पूर्ण होते ही आपको मताधिकार मिलता है तथा यह अधिकार देते हुए -

  1. ना तो यह देखा जाता है कि आप पुरुष, 
  2. ट्रांसजेंडर अथवा 
  3. महिला है 
  4. अर्थात प्रारंभ से ही भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में लिंग Sex ) के आधार पर विभेद (Discrimination ) नहीं किया गया।

परंतु पश्चिमी सभ्यता विशेष रूप से यूरोप तथा अमेरिका में -

  1. लोकतांत्रिक प्रक्रिया स्थापना के साथ महिलाओं को मताधिकार नहीं दिया गया 
  2. जिसको पाने के लिए महिलाओं के द्वारा एक राजनीतिक आंदोलन राजनीतिक समानता के लिए चलाया गया 
  3. प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों की दौरान यह आंदोलन और सशक्त होकर उभरा जिसके परिणाम स्वरूप महिलाओं को मताधिकार मिला इस आंदोलन को ही "सफ्रेज मूवमेंट / Suffrage Movement" कहा गया

 

प्रश्न: प्रथम विश्व युद्ध तथा महिला सशक्तिकरण?

उत्तर:-

  1. प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत कार्य बल (Workforce) में पुरुषों की कमी हो गई थी क्योंकि पुरुषों का एक बड़ा भाग प्रथम विश्व युद्ध की लड़ाई में व्यस्त हो गया था।
  2. परिणाम स्वरूप इस कार्यबल क्षतिपूर्ति के लिए महिलाओं के द्वारा अनेक कार्य को करवाया गया तथा निष्कर्ष मे पश्चिम के पुरुष जगत ने पाया कि -
  3. पुरुषों द्वारा किए जाने वाले कार्यों को महिलाएं भी बहुत अच्छे प्रकार से कर रही है और 
  4. इस प्रकार महिलाओं को लेकर उनकी रूढ़िवादी धारणा में परिवर्तन और महिलाओं की क्षमता का आभास उनको हुआ।

इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध का एक सकारात्मक प्रभाव पश्चिम के जगत में महिला सशक्तिकरण के रूप में आए हैं।


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1.                 अध्याय-01                 

2.                 अध्याय-02               

3.                 अध्याय-03               

4.                 अध्याय-04      

5.                 अध्याय-05        

6.                 अध्याय-06       

7.                 अध्याय-07

8.                 अध्याय-08

 


प्रश्न: सरकार शब्द से क्या समझते हैं? सरकार के कार्य का वर्णन करें।

उत्तर:- भारतीय राजनीतिक दर्शन तथा राजनीति की परिभाषा के अनुसार सरकार राज्य की एक कार्यकारी क्रियान्वित इकाई है अर्थात यह राज्य के -

  1. चरित्र,
  2. स्वभाव तथा 
  3. नीति दर्शन का प्रतिनिधित्व करती है इसके साथ ही 
  4. एक अनुपूरक विचार में सरकार को राज्य का रूप अर्थात चेहरा भी बताया गया है जहां सरकार के माध्यम से राज्य की पहचान की जाती है।

राजनीतिक दर्शन में सरकार राज्य के समतुल्य नहीं होती क्योंकि- 

  1. सरकार होते हुए भी अथवा सरकार न होते हुए भी राज्य का अस्तित्व बना रहता है। 
  2. सरकार लोकतांत्रिक है, प्रजातांत्रिक है साम्यवादी है वह हर प्रकार से राज्य के चरित्र को दर्शाती है 
  3. किंतु यदि इन तीनों चरित्र के साथ भी कोई सरकार नहीं है तब भी राज्य अपना अस्तित्व बनाए रखता है।

उदाहरण :- के लिए राष्ट्रपति शासन की काल अवधि में अथवा भारत में राष्ट्रीय आपातकाल के समय भी भारतीय राज्य का अस्तित्व बना रहा जबकि लोकतांत्रिक सरकार अस्तित्व में नहीं है।

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इस प्रकार हम यह समझ पाते हैं की सरकार राज्य का एक प्रतिनिधि घटक है।

भारतीय संविधान भाग 4 अनुच्छेद 38 के अंतर्गत राज्य को यह निर्देश दिए गए हैं कि'राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था गई बनाएगा"

अर्थात मूल रूप से राज्य द्वारा प्रायोजित सरकार का कार्य लोक कल्याण अभिवृद्धि है।


लोक कल्याण अभिवृद्धि के कार्य करते हुए सरकार 3 मार्ग का अनुसरण करती है

  1. प्रथम नियम मार्ग अर्थात साधारण कार्य,
  2. द्वितीय विनियम माध्यम अर्थात असाधारण कार्य यह विशेष परिस्थिति जनक कार्य,
  3. तृतीय आकस्मिक अथवा आपातकालीन स्थिति जनक कार्य।

प्रथम वर्ग में नियम मार्ग - सामान्य धारा प्रवाह के कार्य जैसे की -

  • शिक्षा व्यवस्था स्वास्थ्य 
  • परिवहन 
  • जल व्यवस्था 
  • सुरक्षा व्यवस्था 
  • सीमा सुरक्षा व्यवस्था 
  • स्तु एवं सेवाओं की वितरण व्यवस्था तथा 
  • अन्य।

द्वितीय वर्ग में विनियम मार्ग धारा प्रभाव के विपरीत किए गए कार्य आते जैसे कि -

  • नियम तोड़ने पर दंड व्यवस्था जिसमें सरकार विधि के माध्यम से दंड व्यवस्था का प्रावधान करती है 
  • जैसे की चालान का होना 
  • आर्थिक दंड लगाना करवा का होना 
  • अवैध भंडारण को रोकना 
  • सामाजिक व्यवस्था के लिए वास्तु सेवा के चक्रीय वितरण व्यवस्था में हस्तक्षेप करना 
  • कुप्रथा के प्रचलन को रोकना 
  • सामाजिक भेदभाव की कृतियों के विरुद्ध दंड प्रावधान तथा 
  • विधियो का संरक्षण करते हुए वर्ग विशेष के लिए विशेष प्रावधान करना इत्यादि

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तृतीय प्रकार में आकस्मिक/आपातकालीन मार्ग   स्थिति उत्पन्न होती है विधि निर्माण प्रक्रिया के माध्यम से उनकी व्यवस्था करना

जैसे की -

  1. देश में वर्ष 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल लगा अथवा 
  2. वर्ष 2020 का कोविड-19 संक्रमण का होना।

ध्यान से विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि -

  1. इन तीनों ही प्रकार के कार्य में वास्तव में सरकार साधारण प्रक्रिया के माध्यम से अथवा हस्तक्षेप के माध्यम से लोक कल्याण अभिवृद्धि के लिए व्यवस्था निर्माण का कार्य कर रही है 
  2. व्यवस्था निर्माण के माध्यम से वास्तव में लोक कल्याण का कार्य ही कर रही है 
  3. जिससे कि एक उचित वातावरण तथा सामंजस्य पूर्ण लोक कल्याण हित के पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो सके।

राज्य की परिभाषा में तथा मूल रूप से राज्य की लोकतांत्रिक परिभाषा में- 

  1. लोग भी राज्य का घटक है 
  2. जहां यह सुनिश्चित होना होता है की लोग अपने आप को राज्य से संबंधित करें, तथा 
  3. राज्य भी उन्हें अपने लोग मानते हुए राज्य द्वारा प्रायोजित नागरिकता का अधिकार दे, और 
  4. इस प्रकार सरकार एवं लोगों के सहयोग से सरकार उचित प्रकार से कार्य कर पाती,
  5.  क्योंकि यदि व्यवस्था में दुर्व्यवस्था का कार्य जनमानस के द्वारा किया जाएगा तो व्यवस्था दीर्घकालीन नहीं हो पाएगी और 
  6. इस प्रकार लोक कल्याण अभिवृद्धि में जनमानस इसका एक महत्वपूर्ण कार्यकारी घटक सिद्ध होता है।

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1.                 अध्याय-01                 

2.                 अध्याय-02               

3.                 अध्याय-03               

4.                 अध्याय-04      

5.                 अध्याय-05        

6.                 अध्याय-06       

7.                 अध्याय-07

8.                 अध्याय-08

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