NCERT-भूगोल-कक्षा-07-अध्याय-01

 

प्रधान शब्दावली



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पर्यावरण



         



  • किसी भी जीवित इकाई अर्थात 
  1. पशु 
  2. पक्षी 
  3. मनुष्य एवं 
  4. अन्य जीवित प्राणी के चारों ओर जो भी स्थान वस्तुएं एवं अन्य जीवित इकाई तथा प्राकृतिक घटक पाए जाते हैं उसे हम पर्यावरण कहते हैं।
  • विकास के क्रम के साथ पर्यावरण को प्रमुख रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है   
  1. प्राकृतिक पर्यावरण एवं 
  2. मानव पर्यावरण।


पर्यावरण के घटक

  1. प्राकृतिक घटक 
  2. मानव निर्मित घटक तथा 
  3. स्वयं मानव पर्यावरण केघटक है।

 

प्राकृतिक पर्यावरण

  • पर्यावरण का वह भाग जोकि प्रकृति द्वारा हम लोगों को दिया गया है प्राकृतिक पर्यावरण कहलाता है।
  • जैसे कि 
  1. वायु 
  2. जल 
  3. स्थल 
  4. मिट्टी 
  5. आसपास की अन्य जीवित इकाई 
  6. वनस्पति इत्यादि।

 

मानव निर्मित

  • पर्यावरण की संरचना में वह घटक जिनकी रचना मनुष्य के द्वारा की गई है 

  1. जैसे कि उद्योग 
  2. अट्टालिका 
  3. सड़क मार्ग 
  4. पुल 
  5. रेल 
  6. वायुयान 
  7. मोबाइल टेलीफोन 
  8. संचार के साधन इत्यादि।


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पर्यावरण के जीवीय घटक

  • पर्यावरण की संरचना में वह घटक जिनमें जीवन पाया जाता है जैसे कि मनुष्य अन्य सजीव प्राणी एवं प्राकृतिक वनस्पति।

 

पर्यावरण के अजीवीय घटक

  • पर्यावरण की वह घटक जिनकी गणना निर्जिव पदार्थों में होती है जैसे कि 
  1. स्थल 
  2. सूर्य का प्रकाश 
  3. मिट्टी 
  4. तापमान 
  5. आद्रता 
  6. हमारा वायुमंडल इत्यादि।

 

स्थलमंडल

  • पृथ्वी की ऊपरी सतह जोकि ठोस है जिस की संरचना भंगुर है तथा जो कि लगभग 100 किलोमीटर मोटी है स्थलमंडल कहलाता है।
  • स्थलमंडल की संरचना में दो घटक है -
  1. पृथ्वी की ठोस सतह तथा 
  2. पृथ्वी की आंतरिक संरचना है पाए जाने वाले प्रवार भाग की ऊपरी ठोस परत।
  • यह दोनों मिलकर लगभग 100 किलोमीटर मोटे स्थल मंडल का निर्माण करती हैं।

स्थलाकृति

  • स्थलमंडल पर पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की आकृतियां जैसे कि 
  1. पर्वत 
  2. पठार 
  3. नदी 
  4. घाटी 
  5. पहाड़ 
  6. निम्न उच्चावत क्षेत्र इत्यादि को स्थलमंडल की स्थलाकृति कहते हैं।

 

जलमंडल

  • पृथ्वी की सतह एवं वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में पाया जाने वाला संपूर्ण क्षेत्र जलमंडल कहलाता है।
  • सतह पर जल मंडल के 
  1. अंतर्गत हिमनद 
  2. भोम जल 
  3. समुंद्र 
  4. झील एवं 
  5. नदियां खाती है इसके साथ ही है वायुमंडल में 
  6. वायुमंडल की आद्रता जलमंडल का स्रोत है।

 

वायुमंडल

  • पृथ्वी की सतह के चारों विभिन्न प्रकार की गैसों का एक आवरण पाया जाता है जिसे वायुमंडल कहती है।
  • यह वायुमंडल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा पृथ्वी से चिपका हुआ रहता है।

 

जैवमंडल / सजीव मंडल

  • पृथ्वी पर जीवन एवं उसकी विविधता को बनाए रखने के लिए यह अवश्यंभावी है की स्थलमंडल वायुमंडल एवं जल मंडल तीनों की उपलब्धता हो।
  • अर्थात वह स्थान जहां तीनों मंडल अर्थात 
  1. स्थलमंडल 
  2. जलमंडल एवं 
  3. वायुमंडल परस्पर क्रियात्मक रूप से उपलब्ध रहते हैं इस प्रकार के मंडल को जैवमंडल कहते हैं।

 

पारितंत्र एवं निर्माण प्रक्रिया

  • वह स्थान अथवा क्षेत्र जिसमें निवास करते हुए एक तंत्र के रूप में समस्त जीवित इकाई परस्पर रूप से एक दूसरे के साथ तथा पर्यावरण के भौतिक एवं रसायनिक कारकों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं परितंत्र कहलाता है।
  • परितंत्र की निर्माण प्रक्रिया में समस्त जैविक इकाई अपने पर्यावरण में उपलब्ध संसाधनों के साथ परस्पर संबंध करते हुए ऊर्जा का स्थानांतरण करते हैं।

 

स्थानीय विभिन्नता एवं अंतर संबंध

  • भौगोलिक स्थानों के मध्य स्थानीय विभिन्नता पाई जाती है जिसका मूल कारण वहां की पर्यावरण की विभिन्नता है। परिणाम स्वरूप उक्त पर्यावरण में निवास करते हुए जैविक इकाई ऊर्जा के स्थानांतरण एवं संसाधनों की पूर्ति के लिए परस्पर संबंध स्थापित करती है।

 

मानवीय पर्यावरण

  • जीवित इकाई के रूप में प्रकृति में सृजनात्मक क्षमता केवल मनुष्य को दी है जिसके परिणाम स्वरूप जब मनुष्य अपने पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया एवं अंतर्संबंध स्थापित करते हुए अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने निकटवर्ती पर्यावरण में परिवर्तन करता है एवं नई इकाइयों का सर्जन करता है तब इस प्रकार के पर्यावरण को मानवीय पर्यावरण कहते हैं।
  • यह एक प्रकार का प्रकृति के साथ संवाद है जिसमें मनुष्य पारस्परिक अनुपात एवं संतुलित संबंध बनाते हुए अपने चारों ओर के पर्यावरण में परिवर्तन करता है।

 

वस्तु विनिमय पद्धति

  • अर्थशास्त्र की भाषा में वस्तु विनिमय पद्धति मांग एवम् आपूर्ति के अंतर्गत इस प्रकार की पद्धति है जिसमें दो व्यक्ति अपने पास उपलब्ध सेवा एवं वस्तुओं का आपस में विनिमय करते हैं तथा यह विनिमय करते समय धन का उपयोग नहीं होता।

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अध्याय- 08

अध्याय- 09



कृति एवं मानवीय पर्यावरण के मध्य सही संतुलन एवं प्राथमिक दायित्वप्रा

  • मनुष्य को चाहिए कि निकटवर्ती पर्यावरण में अपनी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करते समय संतुलन की स्थिति बनी रहे। 
  • वर्तमान में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य जाति पर  रही है वह सभी इसी असंतुलित पर्यावरण संवाद का परिणाम है।
  • यह संवाद सुगम एवं संतुलित रहे इसका का प्राथमिक तथा एकल दायित्व केवल और केवल मनुष्य का है।
  • प्रश्न यहां पर विकास की गति को मैं अवरोध उत्पन्न करने का नहीं है और  ही अर्थव्यवस्था के चक्र में मांग को घटाना है अपितु मांग के चरित्र में इस प्रकार का परिवर्तन करने की आवश्यकता है की मांग की आपूर्ति भी हो जाए तथा प्रकृति के साथ परस्पर संबंध आनुपातिक रूप से संतुलित रहे।
  • उदाहरण के लिए विद्युत आपूर्ति कोयले के स्थान पर सूर्य के प्रकाश से करना।
  • यदि यह परिवर्तन होता है तो निश्चित ही कोयले का दहन कम मात्रा में होगा जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम होगा

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