राज्य की परिभाषा- संवैधानिक

 

👉 प्रथम यह अध्ययन करें👀   

पिछले लेक्चर में हमारे द्वारा राजनीतिक रूप से राज्य की परिभाषा का अध्ययन किया गया था। राजनीतिक परिभाषा में मूल उद्देश्य यह समझना था कि-

  1. राज्य की स्थापना किस प्रकार से चरणबद्ध प्रक्रिया के अंतर्गत होती है तथा 
  2. स्थापना किन विविध घटको का समायोजन है।                 
                

उसी लेक्चर के अंतर्गत हमने यह भी अध्ययन किया था कि राज्य की स्थापना-

  1. मनुष्य द्वारा स्थापित एवं 
  2. प्राथमिक रूप से मनुष्य उन्मुख है।

Note- 

यहां यह बताना आवश्यक है कि -


  1. जब हम यह "मनुष्य उन्मुख व्यवस्था (Human Being Oriented) " स्थापित करते हैं 
  2. तो यहां प्राथमिकता मनुष्य के द्वारा स्थापित की गई व्यवस्था को दी गई है 
  3. यह किसी भी प्रकार से अन्य जैविक घटक का बहिष्कार नहीं करता है 
  4. क्योंकि एक स्थाई एवं 
  5. सतत राज्य (Sustainable State ) की कल्पना परिस्थितिकी तंत्र के अभाव में नहीं की जा सकती।

अब अपने मूल विषय पर आते हैं । 

  1. राज्य की स्थापना के पश्चात चूकी राज्यव्यवस्था मनुष्य उन्मुख है 
  2. तो यह सुनिश्चित करना होगा कि वास्तव में व्यवस्था के अंतर्गत राज्य की परिभाषा क्या है? 
  3. यहां मूल उद्देश्य इस व्यवस्था के द्वारा नियमित होने वाले नागरिकों का राज्य से परिचय करवाना हैक्योंकि -
  4. कार्य निष्पादन तथा 
  5. परिवेदना उन्मूलन (Grievances Redressal ) के लिए जब राज्य से संपर्क किया जाएगा 
  6. तो वास्तव में कहां और किससे संपर्क करना है? 
  7. राज्य की संवैधानिक परिभाषा का मूल उद्देश्य यही है।

भारतीय संविधान में राज्य की परिभाषा -



  1. भाग-03 मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद-12 में तथा 
  2. भाग-04 राज्य के नीति निदेशक तत्व के अंतर्गत अनुच्छेद-36 में दी गई है तथा 
  3. अनुच्छेद 36 के अंतर्गत निर्देशित किया गया है कि राज्य की परिभाषा वही रहेगी जो कि अनुच्छेद 12 के अंतर्गत वर्णित की गई है।

हम यह भी जानते हैं कि मौलिक अधिकारों का चरित्र नकारात्मक है क्योंकि यह राज्य के रूप भारत में निवास करने वाले, वैधानिक रूप से, -

  • प्रवासी तथा 
  • भारतीय नागरिकों को राज्य के विरुद्ध मौलिक अधिकार उपलब्ध कराता है।
  • अर्थात यहां वरीयता राज्य को ना देकर नागरिकों को दी गई है।

इसलिए -

  1. कार्य निष्पादन एवं 
  2. परिवेदना उन्मूलन के लिए 
  3. भारत का यह नागरिक जिस संस्था से राज्य के अंतर्गत संपर्क करेंगे 
  4. वही राज्य परिभाषा के अंतर्गत बताया गया है।

राज्य की संवैधानिक परिभाषा के अंतर्गत-04 घटक आते हैं जिससे

  1. प्रथम केंद्रीय विधायिका एवं कार्यपालिका (Union Legislature & Executive)
  2. दूसरे घटक में राज्य विधायिका एवं कार्यपालिका ( State Legislature & Executive) क्योंकि हम एक संघीय व्यवस्था के गणराज्य है
  3. स्थानीय निकाय (Local Bodies) एवं
  4. अन्य प्राधिकरण (Other Authorities)आते हैं।

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परिभाषा का भाग-04 -

  • परिस्थिति उन्मुख एवं 
  • परिवर्तनशील हैं जहां समय-समय पर राज्य की परिभाषा का वर्णन करते हुए इसकी व्याख्या में विस्तार किया गया है तथा वर्तमान समय में भारत का निजी क्षेत्र भी व्यापक रूप से राज्य परिभाषा के अंतर्गत आता है।
                                          

यह मानक निर्धारित करने का श्रेय हम मूल रूप से 02 न्याय अभियोग को दे सकते हैं । 

  • जिसमें वर्ष 1979 का आर.डी. शेट्टी बनाम अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Inter National Airport Authority) का है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा 6 मानक निश्चित किए गए
  1. प्रथम वह संस्था जिसकी समस्त पूंजी राज्य के द्वारा नियमित की गई है
  2. वह संस्था जिसके समस्त वित्तीय व्यय सरकार के द्वारा वहन किए जाते हैं
  3. वह संस्था जिसमें सरकार का प्रभावी तथा व्यापक रूप से नियंत्रण है
  4. वह निगम जिसके द्वारा किए गए कार्य निष्पादन सार्वजनिक महत्व के हैं तथा जो अत्यधिक सरकारी कार्यों से मिलते जुलते हैं
  5. विभाग जो कि सरकार के द्वारा किसी निगम अथवा निजी संस्थाओं को हस्तांतरित किया गया है तथा
  6. वह संस्था जो कि एक निश्चित क्षेत्र में एकाधिकार रखती है।

  👉 इजरायल फिलिस्तीन विवाद- कारण-भाग-1

 👀

NOTE

न्यायपालिका ने इस व्याख्या को देते हुए इन्हें केवल संकेतक के रूप में बताया है अर्थात यह अपने आप में अंतिम मानक नहीं है

       "वर्ष 2002 में प्रदीप कुमार विश्वास बनाम भारतीय रसायन एवं जैव विज्ञान संस्थान अभियोग।"

     इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के 07 न्यायाधीशों के द्वारा यह निर्णय लिया गया जिसमें कहा गया कि वह संस्थान जिस की

  1. कार्यशैली के आधार पर,
  2. वित्तीय चरित्र के आधार पर, तथा
  3. प्रशासनिक दृष्टि से 
राज्य के द्वारा प्रभावी तथा व्यापक रूप से नियंत्रित होता है राज्य की परिभाषा का अंग है।

मूलतः यह परिवर्तन उदारीकरण के पश्चात एक प्रशासनिक प्रावधान के अंतर्गत किया गया है क्योंकि विकासशील राष्ट्र की विकसित राष्ट्र की यात्रा में यह अंतर्निहित है कि

              "राज्य केवल नियमन (Regulation) का कार्य करता है"

अर्थात उत्पादन एवं सेवा देने का कार्य बृहद एवं निर्णायक स्तर पर निजी क्षेत्र के द्वारा दिया जाएगा ।

उत्पादन एवं सेवा देने का -

  1. चरित्र,
  2. नियम एवं 
  3. नियम क्या है यह राज्य अपने विधायक तंत्र एवं कार्यपालिका तंत्र के माध्यम से सुनिश्चित करेगा।

   एक महत्वपूर्ण पक्ष जिस पर ध्यानाकर्षण की आवश्यक है वह यह है कि -

  1. भारत की न्यायपालिका मूल रूप से इस संवैधानिक राज्य परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती है।
  2. न्यायपालिका का वह व्यवहार जिसके अंतर्गत वह प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन करती है केवल वही भाग राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आता है 
  3. क्यो कि न्यायपालिका का मुख्य कार्य न्याय को सुनिश्चित करना । 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर भारत की न्याय व्यवस्था को राज्य संवैधानिक परिभाषा का अंग नहीं माना है।

 

इस प्रकार हम समझ पाते हैं कि राज्य की -

  1. राजनीतिक परिभाषा राज्य की स्थापना उसके चरित्र के साथ करती है 
  2. जबकि राज्य की संवैधानिक परिभाषाएं राज्य के स्वरूप का वर्णन करते हुए 
  3. नागरिकों को राज्य के विरुद्ध उनके मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करती है ।
  4. अर्थात राज्य किसी प्रकार से नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन ना कर पाए और 
  5. यदि किसी प्रकार से उल्लंघन होता है 
  6. तो परिवेदना के निवारण के स्वरूप भारत का नागरिक न्यायपालिका के समक्ष, उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए, अपने अधिकारों को सुनिश्चित करें।


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