NCERT-भूगोल-कक्षा-07-अध्याय-04

 

प्रधान शब्दावली

 

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         अध्याय 01
        अध्याय 02
        अध्याय 03


वायुमंडल/ Atmosphere

  • पृथ्वी के चारों ओर एक -
  1. रंगहीन
  2. गंध हीन तथा 
  3. स्वादहीन आवरण के रूप में विभिन्न प्रकार की गैसों का एक मिश्रण मिलता है जोकि की पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा पृथ्वी के चारों ओर आवरण के रूप में पृथ्वी पर स्थिर रहता है।


  • वायुमंडल ही पृथ्वी पर उपस्थित समस्त प्राणी जगत को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।
  • पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक तापमान की संतुलित मात्रा को बनाए रखता है।
  • उचित वायुदाब को बनाकर रखता है तथा इसके साथ ही नमी को भी संतुलित रखता है।
  • वायुमंडल में उपस्थित ओजोन गैस की परत सूर्य की हानिकारक किरणों से जीवन इकाइयों की रक्षा करती है।

नाइट्रोजन/ Nitrogen

  • नाइट्रोजन एक 
  • रंग हीन
  • गंध हीन
  • स्वाद हीन
  •  गैस है जिसकी कुल मात्रा पृथ्वी के वायुमंडल में 78.08% है।
  • जय एक ज्वलनशील गैस नहीं है इस कारण से यह अग्निशमन में सहायता करती है।
  • वनस्पति विकास में नाइट्रोजन सर्वाधिक प्रमुख गैस है क्योंकि इसकी पर्याप्त अनुपस्थिति में वृक्ष एवं पौधों का विकास उचित मात्रा में नहीं हो पाता है 
  • परिणाम स्वरूप वनस्पति अविकसित अवस्था में रहती है जिसका सर्वाधिक हानिकारक दुष्परिणाम खाद्य सुरक्षाा हो सकता है।
  • नाइट्रोजन दोनों माध्यम 
  1. वनस्पति 
  2. जल तथा 
  3. वायुमंडल में पाई जाती है।
  • वनस्पति प्रत्यक्ष माध्यम में वायु से नाइट्रोजन ग्रहण नहीं कर पाती है। 
  • मृदा तथा कुछ पौधों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु प्रत्यक्ष रूप से नाइट्रोजन को ग्रहण कर इसके स्वरूप में परिवर्तन करते हैं तत्पश्चात ही वनस्पति नाइट्रोजन को उपयोग में ले सकती है।

 

वायुमंडल की संरचना/ Structure of Atmosphere

  • वायुमंडल की संरचना में 
  1. नाइट्रोजन, 
  2. ऑक्सीजन, 
  3. कार्बन डाइऑक्साइड, 
  4. आर्गन, हीलियम, 
  5. ओजोन, हाइड्रोजन, 
  6. जल वाष्प तथा इनके साथ ही 
  7. कुछ अन्य गैस भी मिलती हैं।
  • वायुमंडलीय गैस के अतिरिक्त धूल के कण भी वायु में उपस्थित रहते हैं।


 


क्षोभ मंडल/ Troposphere

  • पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष की ओर बढ़ते हुए वायुमंडल को 5 परतों में विभाजित किया गया है तथा वह परत जो कि पृथ्वी की सतह पर विद्यमान होती है छोभ मंडल कहलाती है।
  • छोभ मंडल को जीवन मंडल भी कहते हैं।
  • जिसमें वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 
  1. 75 से 80% द्रव्यमान 
  2. धूल के कण 
  3. ऋतु परिवर्तन 
  4. सूर्य का आपतन तथा 
  5. विषुव एवं अयनांत की घटनाएं घटित होती है।
  • विषुवत रेखा पर इसकी औसत ऊंचाई 16 से 18 किलोमीटर तथा पृथ्वी के ध्रुव पर औसत ऊंचाई 8 किलोमीटर की है।
  • इस प्रकार संपूर्ण छोभ मंडल की औसत ऊंचाई लगभग 13 किलोमीटर की है।

 

समताप मंडल/ Statosphere

  • क्षोभ मंडल से अगली परत समताप मंडल की होती है जोकि पृथ्वी की सतह से 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक विस्तार लेती हैं।
  • समताप मंडल में ऊंचाई के साथ तापमान में वृद्धि होती है लेकिन वृद्धि सतत होती है। 
  • इसी कारण से इसको समताप मंडल कहां गया है।
  • ओजोन गैस की परत सी मंडल में मिलती है जिसकी ऊंचाई सामान्य स्थिति में 16 से 32 किलोमीटर के मध्य होती है।
  • ओजोन परत का सर्वाधिक संकेंद्रण 25 किलोमीटर की ऊंचाई पर रहता है।
  • ओजोन परत के निकट इस मंडल में तापमान में वृद्धि दर में तीव्रता आती है जिसका मूल कारण ओजोन परत के द्वारा सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अवशोषण है।
  • यहां विकिरण के प्रक्रिया उचित मात्रा में होती है।


 

मध्य मंडल/ Mesosphere

  • यह वायुमंडल की तीसरी परत है जिसकी विस्तार 50 किलोमीटर से 80 किलोमीटर के मध्य रहता है।
  • वायुदाब अत्यधिक कम होने के कारण यहां सूर्य की ऊर्जा का अवशोषण न्यूनतम स्तर का हो पाता है।
  • परिणाम स्वरूप ऊंचाई के साथ यहां तापमान में गिरावट आती है।
  • तापमान में गिरावट के एक अन्य कारण में वायु कड़ के द्वारा अवशोषण से अधिक ऊर्जा को खोना भी है।

 

ऊष्मा मंडल/ Thermosphere

  • वायुमंडल की चौथी परत का विस्तार मध्य मंडल से लगभग 450 से 650 किलोमीटर की ऊंचाई तक होता है जोकि अधिकतम ऊंचाई की स्थिति में 1000 किलोमीटर तक जा सकती है।
  • ऊष्मा मंडल में ऑक्सीजन के कणों के द्वारा सूर्य के ताप का अवशोषण होता है परिणाम स्वरूप तापमान गभग 1000°C डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है।
  • यह अतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन वाली परत है।

 

आयन मंडल/ Inosphere

  • ऊष्मा मंडल के भीतर ही आयन मंडल भी पाया जाता है।
  • जिसका विस्तार 80 किलोमीटर से लेकर 500 किलोमीटर तक माना गया है।
  1. सूर्य के ताप के विकिरण अथवा 
  2. ब्रह्मांड विकिरण के परिणाम स्वरूप गैस के परमाणु से इलेक्ट्रॉन छूट कर बाहर निकल जाते हैं और इस प्रकार परमाणु धनु आवेशित / पॉजिटिव चार्ज हो जाता है जिसे आयन कहते हैं।
  • मंडल तीन परत में विभाजित रहता है।
  1. प्रारंभ में परत , 
  2. मध्य परत तथा 
  3. अंत मे परत है।

 

बाह्य मंडल/ Exosphere

  • ऊष्मा मंडल के पार वह परत जोकि अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है बाह्य मंडल कहलाती है।
  • सैद्धांतिक रूप से इस मंडल की अंतिम सीमा 1,19,000 किलोमीटर पर बताई जाती है
  • जोकि पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी की आधी है।
  • लेकिन अधिकतम वैज्ञानिक इस की अंतिम सीमा 1000 किलोमीटर तक मानते हैं।
  • इस मंडल की प्रधान गैस में 
  1. हाइड्रोजन तथा 
  2. हीलियम गैस है लेकिन घनत्व अत्यधिक कम होने के कारण वह बहुत दूर एक दूसरे से स्थापित है।
  • इस मंडल में स्वसन क्रिया के लिए वायु उपलब्ध नहीं होती तथा यहां का तापमान भी अत्यधिक ठंडा होता है।
  • वैन एलेन रेडिएशन बेल्ट इसी मंडल में मिलती है जो कि उर्जा आवेशित परमाणुओं का क्षेत्र है । जिनमें से अधिकतर की उत्पत्ति सौर पवनो के माध्यम से होती है
  • तथा प्रकृति के आंतरिक संरचना में उपस्थित बहाय क्रोड़ से उत्पन्न हुए चुंबकीय बल के द्वारा पृथ्वी के चारों ओर आवरण के रूप में मिलती है।

 

 

तापमान/ Temperature

  • किसी स्थान अथवा वस्तु की ऊष्मा की माप उस स्थान का तापमान कहलाता है।
  • स्थान एवं वस्तु उष्ड है अथवा शीतल है अथवा मध्य की स्थिति है इसके मापक्रम की विधि तापमान कहलाती है।

 

आप्तन/ Insolation

  • किसी स्थान एवं वस्तु पर निश्चित समय अंतराल के द्वारा पढ़ने वाला सौर विकरण सूरत ताप या आप्तन कहलाता है।
  • अर्थात सूर्य ताप का वह भाग जो कि पृथ्वी के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है उसे आपतन कहते हैं।
  • यह सुर्यताप ही है जोकि उस स्थान के तापमान को निर्धारित करने का कार्य करता है।
  • पृथ्वी के आकार के अनुसार मध्य से ध्रुव की ओर बढ़ते हुए आपतन या सूरत आप की मात्रा निरंतर घटती है।
  • इसलिए ऐसा अनुभव में आता है कि तापमान भी निरंतर उसी अनुपात में कम होता है।
  • इसलिए हम जानते हैं कि पृथ्वी के मध्य में भूमध्य रेखा पर तापमान सर्वाधिक जबकि पृथ्वी के ध्रुव पर यह न्यूनतम होता है।

 

वायुदाब/ Air Pressure

  • किसी दिए गए स्थान पर जो वायु का जो भार होता है उसे हम वायुदाब कहते हैं।
  • यह वायुदाब उस स्थान पर सभी दिशाओं से लगता है।
  • समुद्र की सतह पर वायुदाब सर्वाधिक एवं स्थिर होता है।
  • हम जानते हैं कि पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष की ओर जाने पर वायुदाब में निरंतर कमी आती है।

 

वायुदाब का क्षैतीज वितरण/ Air Pressure Horizontal distribution

  • महादीप पर वायुदाब की  क्षैतिज प्रवणता सर्वाधिक होती है जबकि समुद्री सतह पर यह न्यूनतम होती है।
  • इसका मूल कारण उस स्थान पर पढ़ने वाले सर्यताप एवं स्थलाकृति है।
  • वायुदाब एवं ताप में व्युत्क्रमानुपाती संबंध है अर्थात अधिक तापमान के क्षेत्र का वायुदाब निम्नतम जबकि न्यूनतम तापमान
  • एवम् हम जानते हैं कि पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष की ओर जाने पर वायुदाब में निरंतर कमी आती है।

 

निम्न दाब/ LowAir pressure

  • पृथ्वी की सतह का वह क्षेत्र जहां का वायुदाब तुलनात्मक रूप से कम होता है वह निम्न दाब का क्षेत्र कहलाता है
  • निम्न दाब के क्षेत्र में जलवायु परिस्थितियां अस्थिर रहती हैं।

 

पवन/ Wind

  • वायु का वह चरित्र जिसमें वायु उच्च वायुदाब के क्षेत्र से निम्न वायुदाब के क्षेत्र की ओर क्षेत्रीय स्तर पर एक निश्चित दिशा में चलती है पवन कहलाती है।





स्थाई पवन/ Permanent winds

  • वह पवन जोकि वर्ष भर पृथ्वी पर वायु प्रवाह करती हैं स्थाई पवने कहलाती हैं।
  • यह तीन प्रकार की होती हैं 
  1. विषुवतीय पुरवाई पवने/ Tropical Easterlies
  2. शीतोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी पवने/ Temperate Westerlies तथा 
  3. ध्रुवीय पुरवाई पवने/ Polar Easterlies.

मौसमी पवन/ Seasonal winds

  • ऐसी पवन जोकि ऋतु परिवर्तन के द्वारा उत्पन्न होती है तथा रितु समाप्त होने पर निष्क्रिय हो जाती है या आ प्रभावी हो जाती हैं मौसमी अथवा रितु आधारित पवन कहलाती है।
  • उदाहरण के लिए भारत की मानसूनी पवन जोकि मानसून रितु में भारत में वर्षा लेकर आती है।

 

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स्थानीय पवन/ Local winds

  • इसके साथ ही वह पवन जोकि एक निश्चित समय पर एक निश्चित स्थान पर वायु प्रवाह करती हैं स्थानीय पवन कहलाती है।
  • जैसे कि उदाहरण के रूप में भारत में ग्रीष्म काल की ऋतु में लू नामक स्थानीय पवन का चलना।

 

स्थल एवं समुद्री समर/ Land Breeze & Sea Breeze

  • यह पवन तटीय क्षेत्रों में चलती है जिनके चलने में संबंधीत तट एक महत्वपूर्ण कारक है।
  • दिन के समय स्थल का तापमान समुंद्र  तुलना में अधिक होने के कारण यहां पर निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है जबकि समुंद्री सतह पर उच्च वायुदाब का क्षेत्र स्थापित रहता है।
  • परिणाम स्वरूप समुद्र से स्थल की ओर पवन चलती है जिसे समुद्री समर कहते हैं।
  • रात्रि काल के समय स्थल एवं समुद्री सतह की वायुदाब क्षेत्र स्थिति दिन की विपरीत हो जाती है परिणाम स्वरूप रात्रि काल में स्थल से समुद्र की ओर पवन का प्रवाह होता है जिसे स्थलीय समर कहते हैं।

 

लू/ Loo

  • यह भारतीय उपमहाद्वीप में ग्रीष्म ऋतु के समय चलने वाली एक स्थानीय पवन है जोकि गर्व एवं शुष्क स्थानों में ही चलती है।

 

आद्रता/ Moisture

  • पृथ्वी पर जल के विघटन अथवा विभाजित विभिन्न स्वरूप के अध्ययन में हम यह ज्ञात कर चुके हैं कि लगभग पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल की मात्रा का 0.2% से 4% भाग वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में उपस्थित रहता है।
  • विषुवत रेखा पर यह सर्वाधिक 4% या उससे अधिक तथा ध्रुव पर न्यूनतम स्तर पर मिलता है।
  • इससे हम यह जान पाते हैं कि तापमान में वृद्धि होने पर वायु की जलवाष्प अर्थात आद्रता ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
  • किसी एक स्थान पर निश्चित समय अंतराल के दौरान वायुमंडल में मिलने वाली जलवाष्प गैस की मात्रा उस स्थान की आद्रता कहलाती है।

 

वर्षड़/ Precipitation

  • वायु जब जलवाष्प के साथ वायुमंडल में ऊपर उठना प्रारंभ करती है तब वह निरंतर ठंडी होती रहती है।
  • परिणाम स्वरूप वायु में उपस्थित जल संघनित होकर मेघ का निर्माण अथवा जल की बूंदों में परिवर्तित हो जाती है मेघ इन्हीं जल बूंदों का एक संगठित स्वरूप होता है।
  • वायुमंडल में जब जल बूंदों का भार इतना अधिक हो जाता है कि  और अधिक समय तक वायु में नहीं तैर सकता तब यह वर्षण के रूप में पृथ्वी की सतह पर 
  1. वर्षा / Rainfall
  2. ओलावृष्टि / Sleetअथवा 
  3. हिमपात / Snowfall के रूप में आते हैं।

 

वर्षा/ Rainfall

  • वर्षण का वह रूप जिसमें जल बूंदों के रूप में पृथ्वी की सतह पर आता है वर्षा कहलाता है।
  • पृथ्वी पर वर्षा तीन प्रकार से होती है - 
  1. संवहनीय वर्षा- संवहनीय वर्षा वह वर्षा होती है जिसमें पवन प्रवाह अपने साथ आद्रता को लेकर आती है एवं निम्न वायुदाब के क्षेत्र वर्षा करती है।
  2. पर्वतीय वर्षा - वह वर्षा जोगी पर्वतीय कारकों के द्वारा होती है पर्वतीय वर्षा कहलाती है।एवं
  3. चक्रवाती वर्षा- वह वर्षा जिसमें वर्षा पार्क चक्रवात के कारण होता है चक्रवाती वर्षा कहलाती है।
  • चक्रवात एकनिम्न वायुदाब का क्षेत्र  होता है जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा केंद्र से बाहर की हो उच्च वायुदाब मिलता है।

 

भौम जल/ Ground Water

  • पृथ्वी पर जल की मात्रा का वह भाग जो कि पृथ्वी की सतह से नीचे भूमि में मिलता है भौम जल कहलाता है।
  • पृथ्वी पर उपस्थित धांजल की अधिकतम मात्रा वर्षा जल से ही प्राप्त होती है।

 

संवहनीय वर्षा/ Convectional Rains

  • संवहनीय वर्षा वह वर्षा होती है जिसमें पवन प्रवाह अपने साथ आद्रता को लेकर आती है एवं निम्न वायुदाब के क्षेत्र वर्षा करती है।


 


पर्वतीय वर्षा/ Orographic rains

  • पर्वतीय वर्षा - वह वर्षा जोगी पर्वतीय कारकों के द्वारा होती है पर्वतीय वर्षा कहलाती है।

 



चक्रवाती वर्षा/ Cyclonic rains

  • चक्रवाती वर्षा- वर्षा का वह रूप जिसमें वर्षा पात चक्रवात के कारण होता है चक्रवाती वर्षा कहलाती है।


👉 आने वाले अध्याय 👀  

अध्याय- 05
अध्याय- 06
अध्याय- 07
अध्याय- 08
अध्याय- 09


जल संरक्षण/ Ware Coservation

  • पृथ्वी पर जल की असीमित मात्रा होने के पश्चात भी पीने योग्य जल अर्थात जीवित इकाई 
  1. वनस्पति तथा 
  2. पशु 
  3. पक्षी एवं 
  4. मानव के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला जल केवल लगभग 3% ही है।
  • जिसमें हम जानते हैं कि 3% में से भी केवल 01% जनही  भौम जल तथा नदियों के माध्यम से वनस्पति पशु पक्षी तथा मनुष्य प्रजाति को उपलब्ध है।
  • क्योंकि विवेकपूर्ण बुद्धि केवल मनुष्य के पास है अर्थात मनुष्य प्रजाति का यह प्राथमिकतथा अनिवार्य दायित्व है कि वह इस सीमित जलस्रोत का संरक्षण करें।


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