25 जून 1975 आपातकाल के 50 वर्ष !! क्यों लगाया था !! Why emergency was imposed in 1975 in Hindi !! HINDI NOTES
अनुक्रमणिका-
- पक्ष-01
- पक्ष-02
- पक्ष-03
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- आपातकाल की घोषणा पृष्ठभूमि
- निष्कर्ष
आज भारत में राष्ट्रीय आपातकाल लगे 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं इसी परिपेक्ष में -
- कि राष्ट्रीय आपातकाल क्यों लगा
- इसके क्या अलग-अलग पक्ष हो सकते हैं
- एक पक्ष आपके सामने रखने का प्रयास मैं भी कर रहा हूं।
पक्ष-01
- जिसका चयन लोकतांत्रिक तरीके से नहीं होता है वह कभी भी जनता पर विश्वास नहीं कर पाता है और वह सदैव इस मंतव्य का होता है कि मैं अपनी सत्ता को सतत किस प्रकार बना सकता हूं।
- इसका जीवंत उदाहरण कांग्रेस का राजसी परिवार इस तथ्य के आधार पर देख रहा था कि स्वतंत्रता के पश्चात निरंतर कांग्रेस का जनाधार निरंतर कम होता जा रहा है।
- अलोकतांत्रिक तरीके से जवाहरलाल नेहरू का
चयन प्रधानमंत्री के लिए किया गया और इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक/
साम्यवादी बनाने के लिए इस साम्यवादी विचारधारा के परिवार ने भारत पर "25/06/1975
आपातकाल (Emergency )" लगाया।
पक्ष-02
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के "न्यायाधीश हुए जगमोहन लाल सिंहा " उनके निजी सचिव का नाम था "मन्ना लाई"।
- न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिंहा ने अपना
निर्णय क्या लिखा है यह तथ्य इंदिरा गांधी को जानना था इस कारण से उन्होंने CID
की दो बार Raid मन्ना लाई के घर पर कार्रवाई।
- क्योंकि साधारण रूप से माना जाता था कि
न्यायाधीश के द्वारा जो भी निर्णय लिखा गया है उसके लिखित प्रति -Written
Copy - निजी सचिव के पास ही होती है।
- लेकिन न्यायाधीश जगमोहन लाल सिंहा यह जानते थे इसलिए अपने निर्णय का अंतिम चरण उन्होंने स्वयं ही लिखा।
पक्ष-03
- यद्यपि यह बात सही थी कि निर्णय आने के पश्चात इंदिरा गांधी त्यागपत्र देने के लिए लगभग तैयार थी किंतु कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और उसमें यह डर कि एक बार सत्ता हाथ से चली गई तो पुनः वापस नहीं आ पाएगी ने इंदिरा गांधी को विवश किया कि वह किस प्रकार अपने पद पर बनी रह सकती हैं।
- यह एक बार पुनः वही भय था जिसमें एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास न करने वाले नेता लोकतांत्रिक प्रक्रिया से भयभीत होने लगता है।
NOTE-
"यह 03 पक्ष बताते हैं की सत्ता का शीर्श उस समय कितना विचलित था।"
👉क्यों हुआ ईरान इजरायल का युद्ध विराम??
आइये इतिहास की ओर चलते हैं-
- सत्ता का शीर्ष विचलित इसलिए था क्योंकि
समय वर्ष 1971 का था पांचवी लोकसभा के लिए भारत
में चुनाव आयोजित करवाए गए।
- कुल 518
लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हुए जिसमें से कांग्रेस ने 352
सीट जीती।
- विपक्ष की ओर से National
Democratic Front केवल 51 सीट ही जीत पाया।
- इंदिरा गांधी के विरोध में गांधीवादी नेता राजनारायण ने चुनाव लड़ा।
- परिणाम में इंदिरा गांधी विजय रही लेकिन
इस विजय के विरोध में राज नारायण न्यायालय के शरण में गए और यह सिद्ध किया की
इंदिरा गांधी की ओर से चुनाव में “अनैतिक
पूर्ण व्यवहार” किया गया है इसलिए इस चुनाव को निरस्त किया
जाए।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति
जगमोहन लाल सिंहा को आरोप के संदर्भ में जो तथ्य दिए गए उनको सही पाया और 12/06/1975 को अपने निर्णय के अनुसार न्यायमूर्ति ने अगले 6
वर्ष के लिए इंदिरा गांधी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया।
NOTE-
- यहां पर स्पष्ट यह करना है कि न्यायमूर्ति सिंह नहीं अपने निर्णय में इंदिरा गांधी से त्यागपत्र के लिए नहीं कहा है अपितु यह कहा कि वह सांसद नहीं रह सकती अर्थात यदि संसद रहना है तो चुनाव में जाना पड़ेगा।
- हां चुनाव लड़ने के लिए 6 साल का प्रबंध है कुल
मिलाकर संसद न बनने के लिए प्रतिबंध था प्रधानमंत्री बनने के लिए नहीं।
- लेकिन भारतीय संविधान व्यवस्था कहती है कि किसी भी स्थिति में आप बिना किसी सदन के सदस्य बने बिना 6 महीने से अधिक अर्थात कुल 180 दिन से अधिक मंत्री पद वहन नहीं कर सकते।
- इस निर्णय के विरोध में इंदिरा गांधी सर्वोच्च न्यायालय पहुंची जहां 24/06/1975 को दिए पर निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय पर स्थगन देते हुए यह कहा कि कुछ उपबंधों के साथ इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती है।
- न्यायपालिका का यह निर्णय इंदिरा गांधी को अस्वीकार था और उसकी पृष्ठभूमि में तीन प्रमुख कारण थे -
- लोकतंत्र का भय,
- वर्तमान की राजनीतिक परिस्थितियों है जहां पर इंदिरा गांधी की सरकार अति अलोकप्रिय थी
- कांग्रेस के अंदर ही राजनीति का संघर्ष जहां यह माना गया है की पुनः वापसी कठिन या संभव हो सकती है।
आपातकाल का आधार-
- आपातकाल का आधार "आंतरिक अशांति" बना जो कि
उस समय आपातकाल लगाने के लिए संविधान का एक प्रावधान अनुच्छेद-352 के अंतर्गत था।
- इस आंतरिक अशांति का आधार एक दिन पूर्व जयप्रकाश नारायण के दिए गए सार्वजनिक सभा के उसे वक्तव्य को बनाया गया जिसके अंतर्गत उन्होंने पुलिस और सेना से आह्वान किया था कि, "वह अपने हथियार छोड़ दे या नीचे रख दे।"
आपातकाल की घोषणा पृष्ठभूमि
- परिणाम स्वरूप इन सभी पक्षों का निचोड़ राष्ट्रीय आपातकाल के रूप में सामने आता है जहां राजनीति का निर्णय इंदिरा गांधी के नाम पर संजय गांधी द्वारा लिया गया एवं बेटे के द्वारा मां के मंतव्य को तैयार कर देश में आपातकाल आरोपित कर दिया गया।
- आपातकाल के द्वारा तीन लक्ष्यो की प्राप्ति करी गई।
- प्रथम न्यायपालिका का निर्णय निश प्रभावी हो गया,
- द्वितीय जो जन आंदोलन भ्रष्टाचार के आधार पर सरकार के विरुद्ध चल रहा था उसका पतन करवा दिया गया, तथा
- तीसरा कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का पटाक्षेप करके अपने सत्ता केंद्र को सुरक्षित किया गया।
और इस प्रकार हम इस उत्तर प्रश्नों का उत्तर जान पाते हैं की, क्यों इंदिरा गांधी
के द्वारा देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया।
निष्कर्ष-
- लोकतंत्र में भयभीत नेता वह होता है जिसको अपने मतदाता तथा देश की जनता का मंतव्य का ज्ञान नहीं होता।
- इंदिरा गांधी, उनके बेटे तथा सहयोगी नेता भारत की जनता का मूल चरित्र नहीं समझ पाए, जहां
- भारत एक संप्रभुत्व राष्ट्र केवल इसलिए बना क्योंकि जनता का मूल चरित्र एवं व्यवहार संप्रभुत्व है।
- इस तथ्य का ज्ञान उनको 21 महीने के पश्चात हुआ जब यह समझ में आ गया कि भारत आपातकाल जैसी
परिस्थितियों में नहीं रह सकता जनमानस अपनी संप्रभुता को बनाए रखने के लिए किसी भी
स्थिति में सहयोग नहीं करेगा।
- परिणाम स्वरुप 21 महीने के पश्चात आपातकाल को हटाया गया और देश में छठी लोकसभा के लिए चुनाव हुए और उसका परिणाम देश के जनमानस ने कांग्रेस की हार के साथ
- एक संदेश के
रूप में कांग्रेस और देश की राजनीति को दिया कि, "लोकतंत्र लोकतांत्रिक युक्त के साथ
ही अस्तित्व में रहेगा"।
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