अध्याय- 1- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास ! आरंभिक सिद्धांत! आधुनिक सिद्धांत! वायुमंडल तथा जलमंडल का विकास।
पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में -
- सर्वप्रथम प्रारंभिक एवं लोकप्रिय मत जन्म
दार्शनिक इमानुएल कांत Immanuel Kant की ओर से
आया।
- वर्ष 1796 में
इसका संशोधन लाप्लेस (Laplace) द्वारा किया गया।
- अंततः यह “निहारिका
परिकल्पना Nebular Hypothesis”
के नाम से जाना गया।
इस परिकल्पना के -
- अनुसार ग्रहों का निर्माण एक प्रकार के धीमी गति से घूमते हुए बादल से हुआ।
- इस बादल को सूर्य की प्रारंभिक अवस्था माना गया।
- वर्ष 1900 में चैंबर्लिन और मॉल्टन (Chamberlain & Moulting ) ने कहा कि ब्रह्मांड में एक अन्य भ्रमणशी तारे ने सूर्य के निकट से "पारगमन/TRANSITION" किया
- परिणाम स्वरुप सूर्य की सतह से "SIGAR के आकार" के सामान कुछ पदार्थ पृथक हो गया।
- कालांतर में यह पदार्थ सूर्य के चारों परिभ्रमण करते हुए धीमे-धीमे "संघनित/ CONDENSED" होकर ग्रह के रूप में परिवर्तित होता है।
- इस मत का समर्थन करने वालों में "जेम्स जींस तथा हेराल्ड जैफ्री (James Jene & Harald Jeffrey)" थे।
ध्यान देने वाला पक्ष यह है कि अभी तक यह
सभी सिद्धांत "एक तारा सिद्धांत" पर आधारित थे अर्थात पृथ्वी की
उत्पत्ति एक तारे से मानी गई।
👉
- वास्तव में "01 तारा सिद्धांत हो या 02 तारा सिद्धांत यह सभी कोरी कल्पनाएं/ ( Only The Hypothetical Amusing Thoughts 🤣🤣) थी।
- इनके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था ।
- इसा-&- मूसा दोनों इस विचार के व्यक्ति हैं कि धरती चपटी / Earth is Flat 🤔🤔है 🤦♂️🤦♂️
- ईसा को लगता था कि मैं ही सर्व ज्ञानवान व्यक्ति इस पृथ्वी पर हुं।
- इसलिए जो मैं कह दूंगा वही सत्य के रूप में प्रमाणित होकर स्थापित हो जाएगा।
- इसलिए अपने कक्ष में बैठकर ही सारी परिकल्पनाएं गणना के रूप में कर दी। 🤣🤣
तत्पश्चात -
- कालांतर में "द्वैतारक सिद्धांत / BINARY STAR" एक संशोधन के रूप में अस्तित्व में आता है जिसका मूल कारण वास्तव में पृथ्वी की उत्पत्ति का मूल कारण न मिलने का था।
- रूस के वैज्ञानिक हुए "ऑटो शिमिड (Otto
Schmidt)" तथा जर्मनी के "कार्ल वाइजास्कर (Carl
Weizascar)"इन दोनों वैज्ञानिकों ने मिलकर “निहारिका परिकल्पना "Nebular
Hypothesis"
में कुछ संशोधन किया।
- इन संशोधन के आधार पर जो विवरण अब सामने आता है वह पूर्व विवरण से भिन्न था।
- संशोधन विचार के अनुसार सूर्य एक “सौर निहारिका – SOLAR NABULAE” से घिरा हुआ था इसके निर्माण पदार्थ में मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम तथा धूल के कारण थे।
- विमुक्त विचरण तथा टकराने से घर्षण के परिणाम स्वरूप एक चपटी तस्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ।
- समय कालांतर में "अभिवृद्धि पराक्रम (ACCERETION
PROCESS)" के द्वारा इस से ग्रह का निर्माण होता है।
- अंततः वैज्ञानिकों ने पृथ्वी एवं अन्य
ग्रहों की ही नहीं अपितु पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधित समस्याओं को समझने का
प्रयास किया, किंतु,
प्रयास अधूरे थे और वास्तव में इनसे संबंधित जितने भी साक्ष्य सामने आए वह भी एक
अधूरे चित्र का निर्माण कर रहे थे अंततः इन विचारों का
त्याग कर दिया गया।
- NOTE- इसी का परिणाम है कि संघ लोक सेवा आयोग ने भी लगभग पिछले दो दशक के अधिक समय से इनसे संबंधित कोई प्रश्न नहीं पूछा है।
आधुनिक विचार-
- आधुनिक विचार के अंतर्गत ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सर्वाधिक प्रमाणिक सिद्धांत “बिग बैग सिद्धांत Big Bang Hypothesis” अर्थात "विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना Expanding Universe Hypothesis के रूप में आता है।
- यह वर्ष 1920 का समय था जब “एडविन हब्बल EDWIN
HUBBLE” ने प्रमाण दिए कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है तथा
समय के साथ आकाशगंगा एक दूसरे से दूर हो रही है।
- इसे ही “हब्बल नियम HUBBLE LAW” कहा जाता है जिसके अंतर्गत उन्होंने “Red Shift” परिकल्पना सिद्धांत दिया।
- साधारण भाषा में जब किसी निकटतम प्रकाश स्रोत से प्रकाश आता है तो हम देखते हैं कि उसका रंग नीला है किंतु जैसे-जैसे वह हमसे दूर होता चला जाएगा उसका रंग लाल होने लगता है क्योंकि लाल रंग अधिक तरंग धैर्य वाला होता है।
- हब्बल ने वर्ष 1924 में ब्रह्मांड का अध्ययन प्रारंभ कर और वर्ष 1930
आते वह बता रहे हैं कि जिस तारामंडल से पहले नीले रंग का प्रकाश आता था अब वह लाल
रंग में परिवर्तित हो रहा है इस परिवर्तन को ही “रेड शिफ्ट
( लाल रंग परिवर्तन )” कहा गया।
- हब्बल के अनुसार ब्रह्मांड निरंतर विस्तार कर रहा है।
- -यह प्रथम तथा सर्वाधिक प्रमाणिक साक्ष्य बनता है बिग बैग सिद्धांत तथा उससे संबंधित ब्रह्मांड विस्तार परिकल्पना का।
- ब्रह्मांड विस्तार परिकल्पना से संबंधित एक दूसरे सिद्धांत वर्ष 1968 में आता है जब दो वैज्ञानिक Arno Penzis &Robert Wilson ने ब्राह्मणी "लघु तरंग पृष्ठभूमि विकिरण - cosmic Microwave Background Radiation" का सिद्धांत दिया।
- जिसके अनुसार यदि ब्रह्मांड में बिग बैंग का
विस्फोट हुआ है तो आज भी उसकी ऊर्जा उपस्थिति होनी चाहिए और यह ऊर्जा उनको 03 केल्विन (K) तापमान पर 01 मिलीमीटर से भी छोटी लघु तरंग के रूप में मिलती
है।
- इसके द्वारा वह प्रमाणित करते हैं कि वह प्रमाणित करते हैं कि हां वास्तव में बिग बैंग का विस्फोट हुआ था।
- कुल मिलाकर ब्रह्मांड का विस्तार आज भी निरंतर जारी है।
बिग बैग सिद्धांत-
- बिग बैग सिद्धांत
के अनुसार 13.7 अब वर्ष पूर्व एक विस्फोट होता है
यह विस्फोट अनंत तापमान तथा घनत्व वाले एक छोटे गोलक रूपी कण में हुआ जिसे “विलक्षणता Singularity”
कहा गया।
- विस्तार के साथ ही ऊर्जा “तत्व पदार्थ” में परिवर्तित होती है
- विस्तार के 3 मिनट के भीतर ही पहले अणु/ATOM का निर्माण प्रोटॉन/PROTON, न्यूट्रॉन/NEUTRON तथा “इलेक्ट्रॉन/ELECTRON
की सहायता से प्रारंभ होता है।
- किंतु यह अणु/ATOM अत्यधिक अस्थिर अवस्था का था।
- इस अणु/ATOM निर्माण की प्रक्रिया का परिणाम यह हुआ कि द्रव्यमान का निर्माण होना प्रारंभ होता है जो की परिणाम स्वरुप गुरुत्वाकर्षण बल को जन्म देता है।
- इस प्रक्रिया के सतत रहते हुए 3 लाख वर्ष के अंतराल पर ब्रह्मांड विस्तार परिकल्पना में ब्रह्मांड का
तापमान 4226 डिग्री सेंटीग्रेड या साधारण रूप से
4000 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास पहुंच गया और इसका सर्वाधिक व्यापक एवं
सार्थक परिणाम यह हुआ कि अब ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।
- पारदर्शिता के साथ अब स्थिर अणु/ATOM का निर्माण प्रारंभ होने लगते हैं और इस निर्माण प्रक्रिया में आज भी ब्रह्मांड का विस्तार निरंतर जारी है।
- Wilkinson Microwave Anisotropy Probe यह
प्रयोग NASA के द्वारा वर्ष 2001 में प्रारंभ किया गया जो कि
वर्ष 2010 तक चला।
- -जिसके अंतर्गत NASA ने ब्रह्मांड के “तापमान विभिन्नता- TEMPERATURE DIFFERENCE” का अध्ययन किया।
- उसके आधार पर उन्होंने बताया क्योंकि -
- "तापमान विभिन्नता है इसलिए घनत्व विभिन्नता स्वत रहती है और यहां पर तापमान विभिन्नता में अधिक तापमान का क्षेत्र लाल बिंदु वाला तथा कम तापमान का क्षेत्र नील बिंदु वाला है
- जो नील बिंदु का क्षेत्र है उसका घनत्व अधिक तथा लाल बिंदु के क्षेत्र का घनत्व अधिक तापमान की उपलब्धता में कम है परिणाम स्वरूप तापमान की विभिन्नता के मध्य के स्थान ही “नवीन पदार्थ सृजन -NEW MATTER CREATION” का स्थान है।
- क्योंकि घनत्व भिन्नता पदार्थ के रूप परिवर्तन को दर्शाती है जो कि संकेत करती है कि घनत्व का अंतर ही नवीन पदार्थ का निर्माण कारण है और नवीन पदार्थ का निर्माण स्थान का सृजन करेगा और इस प्रकार नवीन स्थान विस्तार को प्रमाणित करता है।
पृथ्वी पर वायुमंडल एवं जलमंडल का
विकास
वर्तमान के वायुमंडल के विकास की 03 अवस्थाएं हैं-
- प्रथम अवस्था में “आदिकालीन वायुमंडलीय गैसो- PREMORDIAL ATMOSPHERE” का ह्रास है अर्थात जो सर्वाधिक प्रथम अवस्था की विद्यमान गैसे थी।
- प्राथमिक रूप से वह गैस हाइड्रोजन और हीलियम थी जो कि धीमे-धीमे समाप्त होती है।
- समाप्त होने का कारण सौर पवन के प्रभाव में या तो प्रारंभिक उपस्थित गैस को दूर धकेल दिया गया या वह स्वयं ही समाप्त हो गया।
- समाप्त होने पर दूसरी अवस्था प्रारंभ होगी
और इसमें पृथ्वी के भीतर से विभेदन स्वरूप निकली “भाप- STEAM एवं जलवाष्प- WATER VAPOUR” ने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया।
- इस अवस्था में वायुमंडल में जलवाष्प (H2O), नाइट्रोजन(N2), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मेथेन (CH4), अमोनिया (NH3) अधिक मात्रा में तथा स्वतंत्र ऑक्सीजन आनुपातिक रूप से कम मात्रा में थी।
- द्वितीय
अवस्था में गैस का विभेदन स्वरूप पृथ्वी के आंतरिक भाग से धरती पर आना "उत्सर्जन
(Degassing )"
प्रक्रिया कहलाया।
- निरंतर होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट के परिणाम स्वरुप वायुमंडल में जलवाष्प तथा गैस की मात्रा निरंतर वृद्धि हुई।
- इसी बीच पृथ्वी ठंडा होना प्रारंभ करती है परिणाम स्वरुप जलवाष्प का “संघनन/CONDENSATION” प्रारंभ हुआ।
- संघनन के परिणाम स्वरुप वर्षा प्रारंभ होती है तथा वर्षा जल के साथ कार्बन डाइऑक्साइड घुलकर सतह पर आती है।
- परिणाम स्वरुप तापमान में और अधिक गिरावट होती है जिसका परिणाम “अधिक संघनन एवं अधिक वर्षा” में परिणत होता है।
- वर्षा का यह जल पृथ्वी की सतह पर बने “गर्तो/ DEPRESSION ZONES”
में एकत्रित होना प्रारंभ करता है एवं हमारे महासागर लगभग 400 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर अस्तित्व में आते हैं।
Note- यह
गर्त पृथ्वी के स्थलमंडल पर अधिक घनत्व वाले क्षेत्र हैं परिणाम स्वरूप नीचे की ओर
दब जाते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि समुद्र से ऊंचा उठा हुआ स्थलमंडल का भाग कम
घनत्व वाला है और यह घनत्व परिवर्तन का अंतर ही है जो किसी को अधिक कठोर या अधिक
लचीला अथवा हल्का बनता है।
अंततः अंतिम चरण प्रारंभ होता है -
- जहां पर
लगभग 250 से 300 करोड़ वर्ष पूर्व प्रकाश संश्लेषण/
PHOTOSYNTHESIS की प्रक्रिया प्रारंभ होती है जिसका परिणाम
ऑक्सीजन वृद्धि में हमको मिलता है।
- यहां महासागरों का महत्व इस प्रकार है कि प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा महासागर ऑक्सीजन में वृद्धि करते हैं।
- प्रकाश संश्लेषण की निरंतर प्रक्रिया के
द्वारा महासागर ऑक्सीजन से “संतृप्त/SATURATED”
हो जाते हैं तथा अब वायुमंडल में ऑक्सीजन एकत्रित होना प्रारंभ होती है और इस
प्रकार लगभग 200 करोड़ वर्ष पूर्व वायुमंडल भी
ऑक्सीजन से संतृप्त हो गया है।
- आधुनिक वैज्ञानिक मध्य के अनुसार जीवन की उत्पत्ति एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया का परिणाम है जिसमें सर्वप्रथम “जटिल जैव कार्बनिक अणु Complex Organic Molecules” का निर्माण तथा समुहन प्रारंभ होता है।
- एवं इस समूहन की पुनरावृति जारी रहती है।
- परिणाम स्वरुप अजैविक घटक/
NON BOTIC से जैविक घटक/ BIOTIC पदार्थ का
निर्माण संपन्न होता है।
- जीवन के यह चिन्ह पृथ्वी पर अलग-अलग समय की चट्टानों में जीवाश्म के रूप में पाए जाते हैं।
- यह माना गया कि पृथ्वी पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ।
- जिस प्रक्रिया में एक “कोशीय जीवाणु/ UNI CELLULAR BACTERIAS” से आज के मनुष्य तक के विकास का चरण है।
🙏🙏
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