ग्राम स्वराज- अपना राज पंचायती राज
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👉 ग्राम स्वराज का संबंध मांग एवं आपूर्ति से 👀
ग्राम स्वराज शासन व्यवस्था की वह पद्धति है -
जिसमें -
- शासन समाज के आधारभूत निम्नतम स्तर पर
- समाज के नागरिकों के द्वारा,
- एक औपचारिक संगठन बनाकर,
- विधिवत प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए,
- सर्वसम्मति के आधार पर निर्णय लेकर
- क्रियान्वित किया जाता है।
एक उदाहरण के माध्यम से हम इस परिभाषा को समझने का प्रयास करेंगे तदोपरांत ग्राम सभा के चरित्र का बिंदुवार विश्लेषण करेंगे।
- महाराष्ट्र का जिला गढ़चिरौली जहां पर स्थित है मेंडालेखा गांव।
- इस गांव में गोंड जनजाति निवास करती है।
- गांव की कुल जनसंख्या 500 लोगों की है तथा यहां की प्रतिवर्ष आय 1.5 करोड़ रुपए की है।
- मेंडालेखा गांव की ग्राम सभा मत प्रक्रिया द्वारा निर्वाचित विधायिका के आधार पर निर्णय न लेकर सर्वसम्मति से निर्णय लेती है जोकि अपने आप में एक व्यक्ति को स्वयं से उसकी राजनीतिक शक्ति के संबंध में सशक्तिकरण करता है।
- और इस प्रकार उपरोक्त उदाहरण के संदर्भ में चित्र के माध्यम से व्यक्तिय- संगठन तथा उसके संबंध को स्थापित किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तथा
- राज्य की राजधानी मुंबई में हमारी सरकार
- जबकि गांव में हम ही सरकार।
- जंगल सरकारी,
- सड़क सरकारी,
- बिजली सरकारी और
- हम आश्रित।
ऐतिहासिक पक्ष का अध्ययन करें तो हम पाते हैं कि ब्रिटिश काल से ही गोंड जनजाति के आदिवासियों को "निस्तार अधिकार" दिए गए थे जिसके अंतर्गत -
- जंगल से लकड़ी तथा
- अन्य सामान लेने एवं उपयोग में लाने की अनुमति थी।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात गोंड जनजाति से उनके निस्तार अधिकार वर्जित कर दिए गए।
- परिणाम स्वरूप गोंड जनजाति अपना पारंपरिक "गोकुल" बनाने से वंचित हो गई।
- विरोध स्वरूप गोंड जनजाति ने निस्तार अधिकार पुनः प्राप्ति के लिए गोकुल विरोध स्वरूप निर्माण किए।
- इस विरोध के परिणाम स्वरूप उन्हें निस्तार अधिकार पुनः प्राप्त हुए।
- वर्ष 1996 PESA ( Panchayat (Extension to Schedule areas) Act.) अधिनियम आया।
- इस अधिनियम ने गोंड जनजाति को संयुक्त वन प्रबंधन में समायोजित होने का अवसर दिया, किंतु
- वर्ष 2006 में केंद्र सरकार वन अधिकार अधिनियम FOREST RIGHTS ACT-2006 लेकर आई जिसके अंतर्गत ग्राम सभाओं को उनके वनों पर पूर्ण अधिकार दिया गया।
- किंतु गांव की गोंड जनजाति को बांस एवं तेंदूपत्ता का व्यापार करने का अधिकार नहीं मिला तदोपरांत सत्याग्रह के द्वारा वर्ष 2011 में केंद्र सरकार से अधिकार प्राप्त किया गया।
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गांधी जी का ग्राम स्वराज प्रमुख बिंदु एवं नीतियां-
- स्वराज का अर्थ स्वयं का शासन स्वयं के प्रतिबंधों के साथ।
- स्वराज एक उत्तरदाई शब्दावली है जो स्वयं में नियंत्रित स्वतंत्रता का समर्थन या आत्मसात करती है।
- स्वयं का उत्तरदायित्व नियंत्रण ही "स्वयं का शासन अथवा स्वराज" की स्थापना कर सकता।
- स्वराज
- धनसंपदा तथा
- संसाधनों का एकत्रीकरण का विरोध करते हुए विकेंद्रीकरण का पक्ष रखता है।
- संसाधनों एवं आर्थिक चक्र का केंद्रीकरण
- अपराध में वृद्धि एवं
- राजनीति अधिकार के विस्तार में बाधा उत्पन्न करता है।
- प्रथम मे मांग के आधार पर मूलभूत अधिकार अपेक्षित है जबकि इसके विपरीत
- द्वितीय पक्ष में मूलभूत अधिकारों के अतिरिक्त अधिक संसाधनों का अधिग्रहण वांछित है।
- वास्तव में दूसरे प्रकार के अपराध का जन्म प्रथम अपराधिक परिस्थितियों के अस्तित्व पर निर्भर करता है जहां -
- भय तथा
- वर्चस्व मुख्य कारक है।
- समाज का निर्माण व्यक्तियों के संगठन से होता है और यदि व्यक्ति ही संगठन में आत्मनिर्भर स्थिति में नहीं है तब आत्मनिर्भर समाज का गठन असंभव है, और
- इस प्रकार का समाज सदैव शासन निर्णय निर्भर अर्थात पराधीन रहेगा।
- पराधीन समाज में शासन आवश्यकता से अधिक शक्तिशाली एवं प्रभुत्व वाला हो जाएगा।
- इस प्रकार स्वराज का एक मूल तथा आधारभूत तत्व व्यक्तिगत मानव संसाधन निर्माण है क्योंकि संसाधन निर्माण ही उसका
- सामाजिक,
- आर्थिक एवं
- राजनीतिक सशक्तिकरण करता है।
- ग्राम स्वराज की मूल स्थापना भारतीय सांस्कृतिक पक्ष के अभाव में नहीं की जा सकती
- इससे यह तथ्य भी पुष्ट होता है कि भारतीय सांस्कृतिक पक्ष समावेशी एवं मानव संसाधन विकास उन्मुख है।
- ग्राम स्वराज की मूल भावना -
- समानता एवं
- समरसता है।
- धर्म के आधार पर विभेद निषेध है तथा कार्य करने की पद्धति सत्य एवं अहिंसा पर निर्भर होगी।
- कार्य पद्धति का निर्णय सामंजस्य के आधार पर लिया जाएगा अर्थात-
"विविध एवं प्रतिपक्ष मत का भी समान रूप से सम्मान एवं
- ग्रामस्वराज,
- सभा,
- समिति,
- गण यह कुछ ऐसे शब्द है जो प्राचीन सभ्यता काल से हमारी भाषा शैली में रचे बसे हैं स्पष्ट है कि सिद्ध होता है प्राचीन काल से ही भारत एवं भारतीय सभ्यता एक ऐसी प्रशासनिक पद्धति का अनुसरण करती आई है जिसमें व्यक्ति को -
- राजनैतिक,
- आर्थिक एवं
- सामाजिक कार्यकारी इकाई के रूप में सहभागिता करता रहा है।
- तथा अंतिम बिंदु के रूप में स्वराज यह मानकर चलता है की प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्ति एवं समूह को अपने अधिकारों से ऊपर अपने कर्तव्य को वरीयता देनी होगी। जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति विशेष दूसरे के अधिकारों की चिंता एक दायित्व स्वरूप रूप में करेगा।
1. अध्याय-01
2. अध्याय-02
3. अध्याय-03
4. अध्याय-04
5. अध्याय-05
6. अध्याय-06
7. अध्याय-07
8. अध्याय-08
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