इजरायल फिलिस्तीन विवाद- कारण-भाग-1
अनुक्रमणिका / Index
- विषय परिचय
- विवाद का विषय
- इतिहास काल एवं उसका विभाजन
- प्राचीन इतिहास
- आधुनिक इतिहास एवं शांति प्रयास
- May-2021 का विवाद विषय
- वर्तमान विवाद विषय
- भारत की विषय पर स्थित
- समस्या का समाधान पक्ष
- निष्कर्ष
विषय परिचय
विश्व के जो भी विवाद हुए हैं उनके केंद्र में 05 मूल तत्व में से कोई एक अथवा एक से अधिक रहा है- यह 05 कारण है -
- आर्थिक हित,
- सुरक्षा चिंता,
- वर्चस्व का भाव,
- राजनैतिक आर्थिक हित तथा
- अस्तित्व का विषय।
इस विवाद में भी जो मुख्य केंद्र है वह "भूमि का क्षेत्र" है जिसे "Promised land" लैंड कहा जाता है और इस प्रकार संघर्ष का मूल कारण उपरोक्त पांच कारणों में से आता है वह अस्तित्व का।
- इजराइल देश के लिए विषय अस्तित्व के संकट का है
- जबकि अरब जगत के लिए यह विषय वर्चस्व के दृष्टिकोण का है।
इसी दृष्टिकोण अंतर के कारण इजराइल प्रति एक बार विजय होकर सामने आता है और जिस प्रकार की दिशा तथा गति चल रही है उस मे भी इस बार विजय होने के अधिक संभावना इजरायल की ही है।
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1. अध्याय-01
2. अध्याय-02
3. अध्याय-03
4. अध्याय-04
5. अध्याय-05
6. अध्याय-06
7. अध्याय-07
8. अध्याय-08
विवाद का विषय
यदि न्यायपालिका की दृष्टि से देखेंगे तो इजराइल फिलिस्तीन का विषय Title अर्थात स्वामित्व अधिकार का विषय है।
इतिहास काल एवं उसका विभाजन प्राचीन इतिहास
इस विवाद का इतिहास लगभग 4.5 हजार वर्ष पूर्व का।
तथा इस विवाद के केंद्र में जेरूसलम नगर है जो कि विश्व का प्राचीनतम नगरों में से एक है।
यह नगर तीन धर्म का वैश्विक स्तर पर केंद्र माना जाता है जिस् में भी उसका केंद्र लगभग 35 एकड़ में प्रसारित है और इस 35 एकड़ की भूमि में -
- यहूदी धर्म का Temple of Rock
- मुस्लिम धर्म की अल अक्सा मस्जिद तथा
- ईसाई धर्म का चर्च Churche of Sepulchre है।
4.5 हजार वर्षों के इतिहास में -
- लगभग 70 वर्ष पहले तक यह विवाद धर्म के आधार पर यहूदी विरुद्ध ईसाई था तथा
- पिछले 60 वर्षों के इतिहास में यह यहुदी विरुद्ध इस्लाम बन गया।
Note-
- यहूदी जहां पर भी रहे अपनी कर्तव्य निष्ठा के कारण उन्होंने अपना स्थान और पहचान बनाई।
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वह निरंतर एक नवीन देश की मांग कर रहे थे परिणाम स्वरुप वर्ष 1948 में इसराइल नाम का देश भूमध्य सागर के तटीय क्षेत्र सीमा परिधि में बनाया गया।
- हिंदू धर्म तथा बौद्ध धर्म एवं इसके साथ ही यहूदी धर्म धर्म परिवर्तन में विश्वास नहीं रखते क्योंकि यह इस्लाम तथा ईसाई धर्म के समान यह नहीं मानते की जो उनके संबंधित धर्म का अनुसरण नहीं करता वह गलत मार्ग पर है और उसको ठीक करने के लिए उसका धर्म परिवर्तन करवाना होगा।
- इस्लाम के विस्तार का तथा जन्म का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में दारुल इस्लाम अर्थात इस्लाम का घर स्थापित करके मिल्लत इस्लाम की स्थापना करना है।
- ईसाई धर्म का प्रमुख प्रसार एवं प्रचार 15वीं शताब्दी के प्रारंभ से हुआ जब उत्तरी अमेरिका दक्षिण अमेरिका दक्षिण अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया का अन्वेषण हो चुका था।
अब मूल रूप से हम यह कह सकते हैं कि-
- इस्लाम, ईसाई तथा यहूदी धर्म मूल रूप से एक ही परिवार के धर्म है
- क्योंकि यह एक ईश्वर वाद में विश्वास रखते हैं तथा
- आत्मा का अमर न होना एवं
- व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होना मे भी विश्वास करते हैं।
भारत तथा इजरायल देश का स्थान वैश्विक स्तर पर दो ऐसे स्थान है जहां सर्वाधिक धर्म की उत्पत्ति हुई तथा यहीं से वैश्विक स्तर पर धर्म का प्रसार हुआ।
ईसा मसीह का जन्म यहूदी धर्म में हुआ था तथा बुद्ध के समान ही इन्होंने यहूदी धर्म से अलग ईसाई धर्म का प्रारंभ किया।
बेबीलोनिया धर्म 3500 ईसापुर तथा सुमेरियन धर्म 4500 ईसा पूर्व क्रमशः इराक के उत्तर तथा दक्षिण में विकसित हुए।
यहूदी धर्म का जन्म 18 ईसा पूर्व जैरूसाले तथा ईसा मसीह का जन्म यहूदी के रूप में यरुशलम में हुआ।
पैगंबर अर्थात Massenger तथा नबी prophet
इस्लाम धर्म में ईश्वर का मार्ग नवी और उसके उपरांत पैगंबर से होकर जाता है यह एक धारा तथा पदानुकम का प्रभाव है।
पैगंबर का सिद्धांत इन तीनों ही धर्म में है जहां -
- 48 सामान्य तथा 07 मुख्य पैगंबर यहूदी धर्म में है
- 68 ईसाई धर्म में है तथा
- लगभग 1.25 लाख के निकट मुस्लिम धर्म में उसमें से 25 मुख्य तथा 05 अती मुख्य हैं।
इन तीनों ही धर्म में एक पैगंबर मुख्य है जिसका नाम है इब्राहिम और वह इतना मुख्य है कि इन तीनों धर्म को इब्राहिमय या इब्राहिम वादी धर्म कहकर वर्गीकृत किया गया है।
इब्राहिम का संबंध इन तीनों धर्म से है जहां इब्राहिम के दो पुत्र हुए-
- प्रथम इस्माइल और
- दूसरा इजहाक या इसाक।
- इस्माइल की परंपरा से मोहम्मद पैगंबर का जन्म हुआ जबकि इसाक की परंपरा से यहूदी धर्म का।
- इसाक का एक बेटा हुआ Yakub जिसे ईसाई Jacob कहते हैं और Jacob का ही एक दूसरा नाम था ISREAL जिसका मूल अर्थ है To Rule शासन करना।
- इसी Ishaaq के अर्थात Isreal के 12 पुत्र हुए जिसमें से एक पुत्र का नाम यहूदा था और यही से शब्द निकाल कर आया यहूदी जिसे ईसाइयों ने इंग्लिश में Juda कहा ( Judaism) जो कि आगे चलकर Jews के नाम से जाना।
इसराइल के लोगों के मध्य एक भूमि का उल्लेख मिलता है जिसे Promised Land कहा गया वर्तमान में आज के syria से पश्चिमी जॉर्डन होते हुए गाजा पट्टी तक का ही क्षेत्र प्रॉमिस लैंड की परिधि में आता है।
मूसा को यहूदियों के ईश्वर द्वारा 10 निर्देश दिए गए जिन्हें 10 कमांड्स बोला गया इसके अनुसार-
- मेरे अतिरिक्त किसी और को ईश्वर नहीं मानोगे,
- किसी भी ईश्वर की आकृति अथवा मूर्ति नहीं बनाओगे,
- लालच अथवा स्वार्थ के लिए ईश्वर का नाम नहीं लोगे
- सातवें दिन ईश्वर की पूजा करनी है और वह पवित्र दिन होगा जिसे सामान्य रूप से रविवार माना गया।
- माता-पिता का सम्मान करना है
- किसी की भी हत्या नहीं करनी है,
- व्यभिचार नहीं करना है
- चोरी नहीं करनी है,
- पड़ोसी के विरुद्ध मिथ्या गवाही नहीं देनी है
- पड़ोसी की संपत्ति अथवा पत्नी पर बुरी दृष्टि नहीं रखनी है।
वर्ष 1047 से 930 BC तक यूनाइटेड किंगडम ऑफ इजराइल अस्तित्व में रही जिसमें वर्ष 970 से 931 तक इस किंगडम के सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा सोलोमन का शासन रहा।
यद्यपि सोलोमन के पश्चात यह किंगडम दो भाग में विभाजित हो गई -
- प्रथम बनी Judah और
- दूसरी Isreal.
Temple Mount वह मंदिर जिसको लेकर आज सभ्यताओं का टकराव चल रहा है वह राजा सोलोमन के द्वारा ही बनवाया गया था।
तथा इस मंदिर में जो 10 निर्देश हजरत मूसा को ईश्वर के संदेशवाहक के द्वारा दिए गए थे उसे एक प्लेट पर उकेरा गया तथा एक लकड़ी के वर्गाकार संदूक में उसको सुरक्षित कर इस मंदिर में रखा गया।
वर्ष 586 ईसा पूर्व में बेबीलोनियंस सभ्यता के आक्रांताओं ने इस मंदिर पर आक्रमण कर इसको नष्ट कर दिया और समस्त यहूदियों ने इस क्षेत्र से पलायन किया है यह वही समय था जब प्रथम बार यहूदी भारत में पहुंचे।
539 BC में पर्शियन राजा के द्वारा पुनः जेरूसलम पर विजय प्राप्त करी गई और 516 BC में यहूदियों को निमंत्रण मिला कि वह अपने मंदिर का निर्माण पुनः कर सकते हैं।
वर्तमान की वेस्टर्न वॉल इसी 516 BC में बने मंदिर की दीवार है।
लेकिन अभी भी यहूदी और ईसाइयों के बीच की झगड़ा प्रारंभ नहीं हुए।
किंतु अब समय आया 63 BC का जब रोमन साम्राज्य के शासन Pomps Magnus the Great ने जेरूसलम नगर पर आक्रमण किया और जित गया।
इसके कुछ समय पश्चात 53 BC में Julius Caesar रोम का शासक बना और उसने यहूदी धर्म को वैधानिक मान्यता प्रदान करी।
40 BC रोमन साम्राज्य ने जुड़ा को एक प्रांत के रूप में मान्यता दी जहां रोमन साम्राज्य का प्रीफेक्ट जुड़ा प्रांत के राजा के साथ कार्य करेगा और इस प्रकार इस प्रांत का यहूदियों का प्रथम राजा Herod बने
Herod का शासन 4 BC तक रहा।
04 BC एक महत्वपूर्ण घटना घटी जब Herod राजा के शासन के अंतिम दिनों में Bethlehem में ईसा मसीह का जन्म हुआ।
चुकी ईसा मसीह का जन्म एक यहूदी परिवार में हुआ था इसलिए जन्म के पश्चात उनको यहूदियों के मंदिर में दर्शन के लाया गया।
इसके पश्चात ईसा मसीह Nazareth चले गए तथा उनका शेष पालन पोषण वही हुआ।
ईसा मसीह ने अपने जीवन के चमत्कार सब इस स्थान पर दिखाएं।
मृत्यु से 5 दिन पूर्व ईसा मसीह जेरूसलम आए और चुकी वह यहूदी थे तो Temple of Mount के दर्शन करने गए।
मंदिर की अव्यवस्था को देखकर वह अत्यधिक दुखी हुए और अनुयायियों के साथ उन्होंने उसे मंदिर को साफ करने का कार्य संपन्न किया प्रतिक्रियावश मंदिर का प्रशासन, जो कि यहूदियों के हाथ में था, उसने इसे मंदिर में हस्तक्षेप माना और मृत्यु से ठीक एक रात पहले अर्थात बृहस्पतिवार की रात को ईसा मसीह को बंदी बना लिया गया।
अगले दिन ईसा मसीह को यहूदियों के द्वारा पंचायत के निर्णय के आधार पर मृत्यु दंड के रूप में सूली पर लटका दिया गया।
Note-
- ईसाइयत में एक धारणा प्रचलित है जिसे Trinity कहा जाता है जिसके अनुसार ईसा मसीह एक बार पुनः जन्म लेंगे और यह यरुशलम में होगा।
- Atonement यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी मान्यता ईसाई धर्म में है जिसके अनुसार आदम और देवी जिन्हें दंड स्वरूप पृथ्वी पर भेजा गया था जब उनकी आत्मा पवित्र हो जाएगी तो वह पुनः स्वर्ग लोक Garden Of Eden में जाकर बस जाएंगे।
वास्तव में इस्लाम और क्रिश्चियनिटी -
- दोनों ही एक लक्ष्य के रूप में यहां पृथ्वी पर दंड स्वरूप अपना जीवन जीते हैं और
- वह मानते हैं की जब आत्मा पवित्र हो जायेंगी
- मनुष्य इस कष्ट रूपी धरती रूप को छोड़कर पुनः स्वर्ग लोक में चला जाए जन्नत वापसी।
इस सिद्धांत के अनुसार यदि यहूदी लोग किसी पवित्र आत्मा की बली देते हैं तो ईश्वर उसे सहज शिकार करता है और उसका पुण्य बलि देने वाले को भी मिलता है।
- ईसाइयत कहती है कि ईसा मसीह ईश्वर के पुत्र थे और वह आए ही इसलिए थे कि उनकी बलि दी जाए क्योंकि उनमें कोई पाप नहीं था इसलिए मनुष्य का उद्धार हो और वह पुनः स्वर्ग प्रस्थान करें क्योंकि वह प्रक्रिया किसी कारण से पूरी नहीं हो पाई इसलिए ईसा मसीह पुनः आएंगे।
पुनः आपने मूल विषय पर वापस आते हैं-
66 BC से 135 AD के मध्य यहूदी और रोमन साम्राज्य के संबंधों में संघर्ष चला परिणाम स्वरूप 70 AD में रोमन सेनिक अधिकारी टाइटस ने यहूदियों के मंदिर का विध्वंस किया और यहूदियों को 135 AD तक पूरी तरह से विस्थापित कर दिया।
- इसी मंदिर की पश्चिमी दीवार आज भी अस्तित्व में है जिसे वेस्टर्न वॉल कहते हैं वर्तमान में मंदिर परिसर का क्षेत्र मुसलमान के पास है जहां उनकी मस्जिद अल अक्सा है।
रोमन साम्राज्य अभी भी ईसाईयत के प्रभाव में नहीं है और -
- वर्ष 313- एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम घटित हुआ जब रोमन साम्राज्य के शासक कांस्टेंटिन घोषित किया की जो ईसाइयत को मानेगा अब वह अपराधी नहीं होगा।
- कालांतर में इसी राजा ने जेरूसलम को क्रिश्चियन सेंटर विकसित किया।
- ईसाई धर्म से भावुकता के परिणाम स्वरूप राजा ने यहूदियों का नरसंहार प्रारंभ किया और दास बनाने की प्रथा प्रारंभ हुई।
- 380 AD में रोमन साम्राज्य ने ईसाइयत को राज्य धर्म घोषित किया।
- यहूदियों के विस्थापन की स्थिति 638 AD तक बनी रही जब तक इस्लाम का जन्म होने के पश्चात उन्होंने अपना जेरूसलम पर आधिपत्य स्थापित नहीं कर लिया।
- 638 में इस्लाम के दुसरे पैगंबर उमर के द्वारा यहां पर इस्लामी शासन स्थापित किया गया।
- उमर हरम अल शरीफ पर गए और उसके पश्चात उमर के द्वारा यहूदियों को पुनः Jerusalem में आमंत्रित किया गया।
- और इस प्रकार एक बार पुनः यहूदियों को जेरूसलम आकर बसने का अवसर मिला।
- यह व्यवस्था 1099 AD तक चलती रही।
- 1098 में ईसाइयों के द्वारा क्रुसेड अर्थात धर्म युद्ध प्रारंभ किया गया। यह युद्ध सीरिया में प्रारंभ हुआ
- 1099 में जेरूसलम को जीत लिया गया और इस प्रकार एक वृहद स्तर पर यहूदी और मुसलमान का नरसंहार हुआ।
- इसके बाद प्रयास यह था की जेरूसलम को एक प्रमुख ईसाई नगर के रूप मे विकसित किया जाए।
- पुनः 1189 में एक बार पुनः मुस्लिम शासन की स्थापना यहां हुई और यहूदियों को पुनः बसने का अवसर मिला।
- 13वीं शताब्दी में ओटोमन साम्राज्य की स्थापना Osman के द्वारा की गई।
- 1516 इसी में Ottoman Empire साम्राज्य के द्वारा जेरूसलम को जीत लिया गया।
- लेकिन यहूदी निरंतर जेरूसलम में निवास करते रहे क्योंकि किसी भी मुस्लिम साम्राज्य में यहूदियों को जेरूसलम से निष्कासित नहीं किया गया।
- जेरूसलम की जनसंख्या वितरण के संदर्भ में ओटोमन साम्राज्य ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया तथा नगर को धर्म के आधार पर चार भागों में विभाजित किया गया।
- Temple Mount को केंद्र मानकर मुस्लिम, यहूदी, ईसाई तथा आर्मेनिया ईसाई के मध्य नगर को विभाजित किया गया और इस प्रकार मंदिर के मुख्य द्वार मुस्लिम क्षेत्र में तथा पश्चिमी दीवार यहूदी क्षेत्र में आई।
- टेंपल माउंट को मुसलमान वर्ग हरम अल शरीफ कहता है।
यह है इस विवाद का प्राचीन इतिहास विवरण है अगले अध्याय में हम आधुनिक इतिहास विवरण का अध्ययन करने वाले हैं ।
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