इजरायल-फिलिस्तीन-विवाद-कारण-भाग-2

 

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इजरायल फिलिस्तीन विवाद- कारण-भाग-1



अनुक्रमणिका / Index

  1. विषय परिचय
  2. विवाद का विषय
  3. इतिहास काल एवं उसका विभाजन
  4. प्राचीन इतिहास
  5. आधुनिक इतिहास एवं शांति प्रयास
  6. May-2021 का विवाद विषय
  7. वर्तमान विवाद विषय
  8. भारत की विषय पर स्थित
  9. समस्या का समाधान पक्ष
  10. निष्कर्ष

आधुनिक कल का इतिहास और वर्तमान विषय का मूल केंद्र

1850 ई के निकट से यूरोप में Anti Semitism आंदोलन बृहद स्थल पर तथा व्यापक रूप से प्रभाव में आ गया।

इस आंदोलन के प्रतिक्रिया स्वरूप आंदोलन यहूदियों के द्वारा एक आंदोलन Zionism प्रारंभ किया गया जो 

  1. एक प्रकार का राष्ट्रवादी आंदोलन था तथा 
  2. इसके मूल विचार केंद्र में यहूदियों के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के द्वारा एक देश बनाया जाना चाहिए जिसका लक्ष्य Promised State था।


इस आंदोलन के नायक रहे -

  1. Elizer Ben Yahuda -&- 
  2. Theodor Herzi.

आंदोलन का मुख्य लक्ष्य -

  1. वर्तमान इजरायल के निकटवर्ती क्षेत्रों में पहुंचकर यहूदियों का वहां पर बसाना और रहना प्रारंभ करना था।
  2. हेब्रोन भाषा के आधार पर यह राष्ट्रवादी आंदोलन प्रारंभ किया गया और 
  3. दूसरा उद्देश्य जो भी यहूदी विश्व के किसी भी कोने से आ रहे हैं तो वह यहूदी भाषा हिब्रू समझे सीखें और एक हो जाए।

और इस प्रकार 1881 से 1903 के मध्य प्रथम चरण प्रारंभ हुआ जिसे First Aliyah / Wave कहा गया। यह पहला चरण परिणाम था यूरोप के पहले Progrom का।

इस आंदोलन का द्वितीय चरण प्रारंभ होता है एक घटना के घटना से जब 1903 में रूस में घटी यह घटना Kishinev Progrom के नाम से जाने गई परिणाम बड़ी संख्या में लोग रूस से इसराइल पहुंचे।

चुकी यह लोग रूस  से आ रहे थे परिणाम स्वरुप इनमें बहुत से लोग समाजवादी थे और इस प्रकार यह Zionism और Socialism का मिश्रण था।

वहां पहुंचे लोगों ने दो महत्वपूर्ण कार्य - 




  1. Telaviv नगर की स्थापना की तथा 
  2. Kibbuts / agriculture commun that means community बनाए और इस प्रकार इसराइल जैसे क्षेत्र में कृषि को विकसित किया।

प्रथम विश्व युद्ध अब प्रारंभ होने वाला है जोकि वर्ष 1914 से 1918 के मध्य हुआ तथा जोकी Central Power नेतृत्व करता जर्मनी तथा Allies Power नेतृत्व करता UK के बीच हुआ।

प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय लगभग निश्चित हो चुकी थी। और इस प्रकार -

  1. Zionist ने समर्थन देते हुए इंग्लैंड की सरकार से यह मांग की कि आप हमें समर्थन कीजिए और 
  2. इसके उपरांत Arther Balford, जो उस समय विदेश सचिव थे और जो इस मंतव्य से सहमत थे कि यहूदियों के पास अपना एक पृथक राष्ट्र होना चाहिए 
  3. एक उद्घोषणा प्रस्तुत करी और इस उद्घोषणा में पहली बार फिलिस्तीन देश पर इजराइल देश बनाने की इच्छा प्रकट की गई


प्रथम विश्व युद्ध के साथ Ottoman Empire साम्राज्य लगभग समाप्त होने की स्थिति में था और वर्ष 1918 में ब्रिटिश ने ओटोमन को हराकर फिलिस्तीन पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।

वर्ष 1922 League of Nations ने उद्घोषणा के समर्थन में इंग्लैंड को अधिकृत किया कि -

  1. उद्घोषणा के अनुसार फिलिस्तीन का शासन करें और 
  2. प्रयास करें कि यहूदी तथा अन्य धर्म के लोगों के लिए भी व्यवस्था हो जाए

इस उद्घोषणा के साथ ही फिलिस्तीन में अरब तथा यहूदियों के मध्य देंगे प्रारंभ हो गएप्रतिक्रिया स्वरूप यहूदियों ने आत्मरक्षा के लिए Haganah नाम का संगठन बनाया जो की एक प्रकार का अर्ध सैन्य संगठन था।

1930 के मध्य 05th Aliyah हुआ तथा जिसमें लगभग ढाई लाख यहूदी इसराइल के क्षेत्र में आए नाजीवाद के भय से हुआ।

परिणाम स्वरूप इस क्षेत्र में एक वृद्ध स्तर पर Demographic Change हुआ।

जनसंख्या संतुलन यहूदियों के पक्ष में हुआ प्रतिक्रिया वश अरब जनसंख्या में असुरक्षा का भाव उत्पन्न हुआ और इस प्रकाश संघर्ष की स्थिति और विकराल होती चली गई।

यह कुछ ऐसा ही है जैसा मुस्लिम आक्रांता भारत में अवैध रूप से पश्चिम बंगाल असम तथा उत्तर पूर्व के राज्य में जनसंख्या असंतुलन करवा रहे है।

परिणाम स्वरूप जब जनसंख्या संतुलन यहूदियों के पक्ष में हो गया तब इस क्षेत्र में अरब विद्रोह हुआ परिणाम स्वरुप हजारों एवं लाखों लोगों की मृत्यु हुई।

वर्ष 1939 ब्रिटेन संभवत अब धरातल की परिस्थितियों को समझ चुका था इसलिए वह एक श्वेत पेपर लेकर आया और यहूदियों के आगमन पर प्रतिबंध लग गए।

ध्यान दीजिए- 

  1. यह वह समय है जो वर्ष 1940 से 1945 के मध्य होलोकास्ट के अंतर्गत 60 लाख यहूदियों को मारा गया 
  2. पोलैंड और पूर्वी यूरोप में यहूदियों पर आत्मघाती हमले और दुराचार हो रहे हैं और 
  3. इसके ठीक विपरीत इंग्लैंड ने अन्य यहूदियों के आगमन पर अब प्रतिबंध लगा दिया है 
  4. इसके साथ ही प्रतिबंध के अंतर्गत ब्रिटिश रॉयल आर्मी की Navy समुद्र में तैनात हो गई।

Aliyah Bet नाम से यहूदियों ने एक गुप्त कार्यक्रम चलाया जिसमें अवैध रूप से यहूदियों को यूरोप एवं निकटवर्ती देशों से इसराइल में लाया गया।

इसी समय द्वितीय विश्व युद्ध भी प्रारंभ हो गया और इंग्लैंड की इच्छा थी कि अरब और यहूदी इंग्लैंड की ओर से द्वितीय विश्व युद्ध लड़े।

मुस्लिम और इस्लाम की मानसिकता है यह विरोध के आधार पर कूटनीति का निर्धारण करते हैं अपने स्वयं के हित के आधार पर नहीं।

इंग्लैंड के प्रस्ताव को, मुख्य रूप से उसके मुस्लिम नेताओं ने, अस्वीकार करते हुए जर्मनी और उसके सहयोगी देशों इटली तथा जापान का साथ दिया।

इसके पृष्ठभूमि में विचार यह था कि- 

  1. जर्मनी युद्ध में जीतेगा और इसराइल नामक देश अस्तित्व में नहीं आएगा और 
  2. जो यहूदियों रह रहे होंगे जर्मनी की सेना उन्हें यहां पर आकर समाप्त कर देगी।

Note- यहूदियों की वैश्विक स्तर पर संख्या दशमलव 0 2% है लेकिन अभी तक Nobel Prize 20% नोबेल प्राइज यहूदियों की मिल चुके हैं अमेरिका के उच्च कोटि के अमीर लोगों में कम से कम 20% यहूदी है।

भारत में इसका उदाहरण हम पारसी समुदाय से ले सकते हैं संख्या केवल डेढ़ लाख के आसपास लेकिन -

  1. भारत के सबसे सफल अधिवक्ता नाना पालकी वाला,
  2. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश,
  3. रतन टाटा,
  4. Covid vaccine के स्वामी आधार पूनावाला यह सभी पारसी हैं तो मुसलमान क्या कर रहा है? संख्या बल में अधिक होते हुए भी इतने बेचैन, अस्थिर क्यों है?

क्योंकि यहूदियों ने द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन दिया था इसलिए वर्ष 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और परिस्थितियों यहूदियों के पक्ष में बहुत तीव्र गति से परिवर्तित हुई।

लेकिन यहूदियों के अनुसार परिस्थितियोंअभी भी परिवर्तित नहीं हुई ?

इंग्लैंड ने अभी भी प्रतिबंध लगा रखे थे प्रतिक्रिया में एक अन्य सैनिक संगठन का निर्माण होता है नाम है Irgun ?

इसने वहां के होटल King Devid पर आत्मघाती आक्रमण करके लगभग 90 इंग्लैंड के लोगों को मार दिया यह लोग इस होटल से फिलिस्तीन की सरकार चलाते थे।

परिस्थितियों अनियंत्रित हो गई परिणाम स्वरूप इंग्लैंड इस क्षेत्र से  बहिर्गमन करने के लिए तैयार हो गया।

किसी प्रकार का समझता नहीं हो पा रहा था क्योंकि यहूदियों को राष्ट्र से कम कुछ नहीं चाहिए समाधान के रूप में ब्रिटेन ने यह विषय संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तांतरित कर दिया।

इसी के साथ यह उद्घोषणा इंग्लैंड के द्वारा करी गई कि-

  1. 15/05/1948 तक हम इस क्षेत्र को छोड़ देंगे।
  2. 29 नवंबर वर्ष 1947 संयुक्त राष्ट्र एक प्रस्ताव लेकर महासभा के समक्ष आया जिसके अनुसार इस क्षेत्र के विभाजन से इसराइल और फिलिस्तीन राज्यों का निर्माण होना था।

क्षेत्र विभाजन कुछ इस प्रकार से किया गया जिस को -

  1. अन्याय पूर्ण तथा अनियंत्रित माना गया और 
  2. अरब इससे बहुत अधिक रुष्ट हो गए लेकिन क्योंकि संयुक्त राष्ट्र में बोलबाला अमेरिका ब्रिटेन और सोवियत संघ का था जिसमें यहूदी मंडली बहुत अधिक सशक्त थी इसलिए निर्णय इजरायल के पक्ष में आया।
  3. समर्थन के पक्ष में 33 वोट विपक्ष में 13 वोट तथा अनुपस्थित 10 वोट रहे।
  4. भारत अरब देशों की मंडली से अलग एक मात्र देश था जिसने इसके विरोध में मतदान किया।

व्याख्या के अनुसार -

  1. नेहरू जी ने पाकिस्तान के मुसलमान के साथ सद्भावना संबंध रखते हुए अथवा 
  2. भारतीय राजनीति में मुसलमान के तुष्टीकरण को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया।

प्रस्ताव पारित हुआ और बड़े स्तर पर दंगे प्रारंभ हो गए।

14-May-1948 को ब्रिटेन इसराइल से बहिर्गमन कर गया।

इसराइल राज्य की घोषणा करने वाले थे David Ben Gureon, जोकि Jews Agency Head थे तथा बाद मे वहां के प्रथम प्रधानमंत्री भी बने।

घोषणा होने के साथ अमेरिका ने, उसके प्रमुख साथी देशों ने तथा अन्य प्रमुख देशों ने इसराइल को मान्यता प्राप्त कर दी।

भारत ने भी वर्ष 1950 में इसराइल को मान्यता दे दी

पाकिस्तान, अरब लीग तथा अफगानिस्तान यह ऐसे आधिकारिक निकाय हैं जिन्होंने अभी तक इसराइल को मानता नहीं दी है।

15 /05/1948 के दिन से ही एक युद्ध प्रारंभ हुआ जो 1 वर्ष चला।

हमला करने वाले प्रमुख देशों में- 

  1. Egypt, 
  2. Jordan
  3. Syria और 
  4. Iraq थे जिनको सहायता मिली सूडान सऊदी अरब और यमन।


परिणाम स्वरूप इजराइल ने 1 वर्ष के अंतराल पर इस युद्ध को जीता।

Note- युद्ध जीतने का मुख्य कारण अस्तित्व का संकट था जबकि अरब देशों के बीच यह एक सम्मान का विषय था।

युद्ध के परिणाम के साथ मानचित्र और परिवर्तित हुआ और इजरायल ने अपना विस्तार मध्य तथा गाजा पट्टी पर किया।

गाजा पट्टी का एक छोटा सा टुकड़ा इसराइल के आधिपत्य में नहीं आ पाया क्योंकि इजिप्ट ने उसे पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।

लेकिन जो महत्वपूर्ण घटना थी वह यह कि इस युद्ध के साथ आधा जेरूसलम इसराइल के पास आ गया।

विजय प्राप्त कर गए नए क्षेत्र पर एक सीमा रेखा खींची गई जिसे Green Line कहा गया और निर्धारित किया गया कि अब इस रेखा पर ही दोनों देशों के मध्य भविष्य की बात होगी।

हमें ध्यान रखना है कि क्योंकि फिलिस्तीन अस्तित्व में नहीं आया था इसलिए फिलिस्तीन नामक स्थान पर जॉर्डन ने अपना आधिपत्य स्थापित किया।

11/05/1949 इसराइल को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता मिल गई तथा अन्य देशों से और मान्यता मिल गई।

इजराइल देश ने Law of Return का विधान बनाकर यह सुनिश्चित किया के विश्व के किसी भाग से यहूदी अथवा यहूदी मूल का व्यक्ति आकर इजराइल में रह सकता है और आने पर उसे वहां पर नागरिकता प्राप्त होगी।

वर्ष 1956 इजिप्ट में एक नए राष्ट्रपति अब्दुल नासिर सत्ता में आए जो की अरब आधिपत्य का विचार रखते थे।

वर्ष 1956 में Egypt ने स्वेज नहर को नियंत्रित कर इजराइल का व्यापार एशिया के साथ रोक दिया इसके साथ ही पूर्व में स्थित Tiran strait को अरब के सहयोग से नियंत्रित करवा दिया।

परिणाम स्वरूप युद्ध प्रारंभ हुआ और इजरायल की सेना ने संपूर्ण Senai प्रदीप पर नियंत्रण स्थापित किया।

वर्ष 1957 में Isreal Egypt से तभी हठा जब यह लिखित सहमति हो गई की दोनों जल राशियों में इसराइल के व्यापार को नहीं रोका जाएगा।

वर्ष 1964 PLO की स्थापना उद्देश्य यह था कि हिंसात्मक क्रिया के द्वारा अपना देश वापस लेना है।

शांति अभी भी ठीक से स्थापित नहीं हुई और वर्ष 1967 में 6 दिन का युद्ध प्रारंभ हुआ जिसमें -

       इजिप्ट

       जॉर्डन

      सीरिया

      इराक

      लेबनान और अन्य देशों ने एक साथ मिलकर इसराइल पर युद्ध किया।

अरब देशों की तुलना में इसराइल के पास धन संपदा तथा मानवीय संपदा तुलनात्मक रूप से सदैव कम रही तब भी क्या कारण है इसराइल सदैव विजय रहता है।

वर्ष 1970 इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर की मृत्यु तथा अब वहां के उपराष्ट्रपति अनवर सादात राष्ट्रपति बने।

अरब देश अब समझ गए थे कि प्रत्यक्ष युद्ध से हम इजराइल से नहीं जीत पाएंगे तब अप्रत्यक्ष युद्ध की रणनीति बनाई गई और जर्मनी के म्यूनिख ओलंपिक में आतंकवादी घटना करते हुए 11 इसराइलियों को मार दिया।

Note - 

  1. यहूदियों का ईश्वर भी कठोर है 
  2. इसलिए यहूदियों की निर्णय क्षमता और नीति निर्धारण और लक्ष्य प्राप्ति भी कठोर है और 
  3. वह कहते हैं "En eye for an eye and a tooth for a tooth". यह वाक्य यहूदियों के ओल्ड टेस्टामेंट अर्थात हिब्रू बाइबल में लिखा हुआ है।

वर्ष 1972 जर्मनी के म्यूनिख में ग्रीष्म ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ तथा इजरायल की 11 नागरिकों को मार दिया गया।

यह हमला एक संगठन नाम Black September के द्वारा किया गया यह अरब देश के गोरिल्ला संगठन का एक उप संगठन था।

Note - 

किसी भी देश की विदेश नीति को समझना हो तो आपको यह अध्ययन करना होगा उस देश के समाज की क्या सांस्कृतिक तथा धार्मिक मान्यताएं। यहूदियों की मान्यताओं में क्षमा शब्द का स्थान नहीं है।

म्यूनिख की घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप इसराइल ने एक ऑपरेशन लॉन्च किया नाम था Wrath of God.

वर्ष 1973 एक बार पुनः इजरायल एक ओर तथा तथा दूसरी ओर मिसस् और सीरिया ने एक साथ मिलकर आक्रमण किया। इसमें समर्थन मिसस् और सीरिया को सोवियत संघ का मिला।

लेकिन परिणाम एक बार पुनः वही रहा और इस बार इसराइल ने और अधिक भूभाग पर आधिपत्य स्थापित किया।

वर्ष 1976 Operation Thunderbolt किया गया जिसमें एक फ्लाइट का अपहरण किया गया फ्लाइट को अपहरण करके युगांडा लाया गया जहां ऑपरेशन थंडर गोल्ड के अंतर्गत इजरायल की सेना ने युगांडा में ऑपरेशन किया केन्या की सहायता से और अपने नागरिकों को और बंधकों को वहां से ले गए।

इसी बीच वर्ष 1973 में इजराइल Likud party की स्थापना Menachem Begin, जोकि Irgun के संस्थापक भी थे, के द्वारा की गई।

  1. अरब देशों को लगभग आभास हो गया था कि इजरायल से युद्ध बहुत हो गए और हम अपनी भूमि ही गवाह रहे हैं 
  2. परिणाम स्वरूप वर्ष 1977 में शांति स्थापित करने के प्रयास प्रारंभ हुई जब Anwar Sadat के द्वारा इजरायल की अधिकारीक यात्रा की और इजरायल देश को मान्यता दी गई और इस प्रकार मिस्र अरब देश समूह में इसराइल को मान्यता देने वाला प्रथम देश बना।

वर्ष 1978 Camp David Accord हस्ताक्षर हुए जिसके परिणाम स्वरूप 

  1. इसराइल ने Senai Peninsula / प्रायदीप से अपनी सेना को वापस बुला लिया तथा 
  2. Gaza Belt और West Bank पर बातचीत करने में सहमति बन गई।
  3. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसका स्वागत किया और वर्ष 1978 का नोबेल शांति पुरस्कार Begin और Sadat को संयुक्त रूप से मिला।

वर्ष 1980 इसराइल के प्रधानमंत्री Begin ने इजरायल की ओर से घोषणा कर दी की जेरूसलम इजरायल की राजधानी होगी परिणाम स्वरूप अरब ने तथा पश्चिमी देश समूह ने अपनी रुष्टता व्यक्त करी।

वर्ष 1993 एक बार पुनः शांति के प्रयास के परिणाम स्वरूप Oslo Accord समझौता हुआ।

जिसके अंतर्गत -

  1. PLO ने इसराइल को और इजरायल ने PLO को मान्यता दी और 
  2. यह अधिकार दिया गया कि वह Gaza पट्टी और West Bank पर अपना शासन स्थापित कर सकती है।
  3. इजराइल का पक्ष Shimon Perez और फिलिस्तीन का पक्ष Mohammad Abbas की ओर से रखा गया।
  4. Mohammad Abbas आज भी फिलिस्तीन के सर्वमान्य नेताओं में से एक है।
  5. परिणाम स्वरूप Palestine National Authority का गठन किया गया और मोहम्मद अब्बास अभी भी इसके प्रमुख है।
  6. वर्ष 1994 में जॉर्डन के साथ में समझौता हो गया जॉर्डन ने भी इसराइल को मान्यता दे दी।

जॉर्डन वह देश था जिसके अधिपत्य में जेरूसलम और वेस्ट बैंक का क्षेत्र था।

आज भी Temple of Mount की सुरक्षा का दायित्व जॉर्डन का ही है।

शांति प्रयास इजरायल की ओर से बड़े स्तर पर किए जा रहे थे जिससे इजरायल के एक वर्ग में असंतोष की भावना ने जन्म लिया परिणाम स्वरूप- 

  1. Year 1995 Yagel Amir के व्यक्तियों ने प्रधानमंत्री Rabin की हत्या कर दी 
  2. परिणाम स्वरूप शांति की सभी प्रक्रियाएं उस समय के लिए रुक गई।

वर्ष 1996 वर्तमान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का इसराइल के प्रधानमंत्री के रूप में प्रवेश होता है जो वर्ष 1996 से 1999 तक तथा वर्ष 2009 से 2021 तक तक प्रधानमंत्री रहे तथा वर्तमान में अभी भी इजरायल के प्रधानमंत्री है।

बेंजामिन नेतन्याहू ने शांति स्थापित होने के लिए दो महत्वपूर्ण कार्य- 

  1. पहले हेब्रोन से इजरायल की सेनो को वापस ले लिया तथा 
  2. दूसरा जो फिलिस्तीन नेशनल अथॉरिटी का गठन हुआ था उसको लगभग सारे अधिकार यह केहते हुए दिया कि इसराइल अब आपको नियंत्रित नहीं करेगा।

वर्ष 1999 Ehud Barak लेबर पार्टी की ओर से इसराइल के प्रधानमंत्री बने।

वर्ष 2000 कैंप डेविड सम्मिट सम्मेलन का आयोजन -

  1. Bill Clinton,
  2. Ehud Barak और 
  3. Yasir Arafat के मध्य हुआ।

Ehud Barak ने इस सम्मेलन में प्रस्ताव किया कि -

  1. गाजा़ पट्टी 100% आप ले लीजिए 
  2. वेस्ट बैंक का 90% क्षेत्र भी फिलिस्तीन के पास रहेगा।
  3. जेरूसलम एक साझा राजधानी होगी और 
  4. फिलिस्तीन राज्य की स्थापना होने पर हम उसको मान्यता देंगे

संपूर्ण विश्व को आशा थी कि यह समझौता इस बार हो जाएगा लेकिन अंतिम क्षण मे किसी कारणवश यह संधि समझौता नहीं हो पाया और दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर आरोप लगाकर बातचीत को असफल बताया।

वर्ष 2001 में पुनः एक प्रयास हुआ जब -

  1. लिक्विड पार्टी से प्रधानमंत्री Ariel Sheron गाजा पट्टी से सेना को वापस बुला लिया और 
  2. गाजा पट्टी पूर्ण रूप से फिलिस्तीन नेशनल अथॉरिटी के सौंप दी कि आप इसका शासन और प्रशासन देखिए।
  3. इस के साथ ही एक विवादास्पद निर्णय भी यह सामने आया जब West Bank Barrier के नाम से एक दीवार इन्होंने बनानी प्रारंभ करी।

वास्तव में 1948 के युद्ध के पश्चात जिस ग्रीन लाइन का निर्माण हुआ था सामान्य रूप से उसे ही दो देशों के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा माना गया और सहमति यह बनी कि जब भी किसी विवाद या अथवा विषय पर वार्तालाप होगा तो इसी सीमा को मानकर विषय प्रारंभ होगा।

Ariel Sheron  ने इस Green Line के वेस्ट बैंक पर पर एक बाड़ बनानी प्रारंभ करी।

यह कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे की फिलीस्तीन को एक सीमा के अंदर बांधा जा रहा है।

विषय संयुक्त राष्ट्र महासंघ के पास गया जहां भारत सहित पूर्ण बहुमत के माध्यम से इसके विरोध में मतदान हुआ।

वर्तमान विवाद का विषय एक यह भी है की -

  1. जो फिलिस्तीन नेशनल अथॉरिटी है उसमें दो प्रशासन समूह कार्य कर रहे हैं एक है फतेह पार्टी जो की प्राचीन या मूल फिलिस्तीन का शासन चलता है 
  2. जबकि एक दूसरा उग्रवादी समूह हमास है जो कि गाजा पट्टी पर अपना शासन नियंत्रित करता है। 

यहां तक हमने आधुनिक इतिहास का अध्ययन किया अब -

  1. 03 अंक में हम वर्ष 2021 का विवाद विषय,
  2. भारत का अभी तक का क्या पक्ष इस विषय विवाद के संबंध में रहा है तथा 
  3. एक उचित समाधान किसी दृश्य के साथ बनता है इसका अध्ययन करेंगे।


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