ग्लोबल साउथ (मीनिंग) क्या है !! ग्लोबल नॉर्थ एंड ग्लोबल साउथ !! संसाधनों का केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण ( महत्व ) क्या है? !! Global South in Hindi !! UPSC Notes In Hindi
अनुक्रमणिका-
- प्रतिस्पर्धी संतुलन के उपाय?
- "ग्लोबल साउथ ( वैश्विक दक्षिण)- संसाधन केंद्रीयकरण से विकेंद्रीकरण?
- ग्लोबल नॉर्थ (Global North ) तथा ग्लोबल साउथ (Global South ) का विभाजन?
- प्रधानमंत्री की ग्लोबल साउथ देश की यात्रा?
- निष्कर्ष?
अपने प्रतिद्वंदी को संतुलन करने का नियम कहता है कि-
- आप उसके साथ प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा में उतरे, लेकिन सुनिश्चित करें कि आपकी पराजय/हार ना हो।
- पराजय आपकी रणनीति पर निर्भर करेगी लेकिन जो निश्चित है वह कि संसाधनों का दोहन होगा।
- परिणाम कितना प्रभावी आएगा यह प्रतिद्वंदी की शक्ति पर निर्भर करेगा हो सकता है कि परिणाम नकारात्मक हो जाए।
- दूसरा उपाय है जो आपका प्रतिद्वंदी है उसके प्रतिस्पर्धी का सशक्तिकरण करें।
- परिणाम क्या होगा प्रतिस्पर्धी जितना शक्तिशाली बनेगा उतना अधिक आपके प्रतिद्वंदी की शक्ति का ह्रास होगा।
- अर्थात यदि वह कम शक्तिशाली हुआ तो कम शक्ति आपके प्रतिद्वंदी की जाएगी यदि वह अधिक शक्तिशाली हो गया तब अधिक शक्ति का ह्रास प्रतिद्वंदी का होगा।
- जो निश्चित है वही है कि प्रतिद्वंदी कमजोर होगा क्योंकि सशक्तिकरण के साथ प्रतिद्वंदी का प्रतिस्पर्धी अपने भाग के संसाधनों की मांग करने लगेगा
- यदि मांग पूरी होती है तो संसाधनों का विकेंद्रीकरण होगा, और
- यदि नहीं होती है तो प्रतिस्पर्धा होगी अंततः परिणाम प्रतिद्वंद्वी के क्षीणता में ही निकलेगा।
Note- हां, लेकिन बहुत सजकता के साथ आपको अपने प्रतिद्वंदी के प्रतिस्पर्धी का चयन करना होगा कि कही वह समय के साथ आपके नकारात्मक कार्य न करने लगे।
इस वैश्विक संसाधन केंद्रीकरण को समझने का उदाहरण -
- हम अपने परिवार से लेते हैं जहां हमने अनुभव करा होगा कि यदि संयुक्त परिवार के किसी एक पक्ष के पास अधिक संसाधनों का संग्रह हो गया है तब किसी न किसी कारण से संयुक्त परिवार में मतभेद की स्थिति आ जाती है।
- यह स्थिति और गहरी हो जाती है जब संसाधनों का वितरण असमान रूप से किया जाता है उस स्थिति में परिवार के लोग ही एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं।
- "ग्लोबल साउथ" वास्तव में संसाधन केंद्रीकरण का परिणाम है जहां पर “ग्लोबल नॉर्थ/ Global North” के पास अधिक संसाधनों का केंद्रीकरण एवं उन संसाधनों के आधार पर ग्लोबल साउथ का निरंतर शोषण किया गया है।
Carl Oglesby, अमेरिका की राजनीति के एक राजनीतिक सक्रिय कार्यकर्ता थे, वियतनाम युद्ध के समय उन्होंने एक लेख लिखा जिसने पहली बार "ग्लोबल साउथ" शब्द प्रयोग में लिया गया। इसके आधार पर उन्होंने बताया कि,-"वर्षों से ग्लोबल नॉर्थ ने ग्लोबल साउथ के ऊपर अपने प्रभुत्व को बना कर रखा" परिणाम स्वरूप वहां पर “असहनीय सामाजिक विषय” उत्पन्न हुए जिसमें "सामाजिक अराजकता" अंतिम परिणाम के रूप में बाहर निकाल कर आता है।
आज जब हम -
- "लैटिन अमेरिका/ Latin America (Central America + South America )" के देश या
- प्रमुख रूप से अफ्रीका के देशों को देखते हैं
- तब समझ पाते हैं कि वहां की अराजकता वास्तव में वर्षों तक ग्लोबल नॉर्थ के द्वारा संसाधनों के केंद्रीयकरण का परिणाम है
- जिसके माध्यम से "ग्लोबल नॉर्थ" "ग्लोबल साउथ" के ऊपर अपने प्रभुत्व को बनाए रखता है।
ऊपर दिए गए चित्र के माध्यम से हम ठीक प्रकार से समझ पाते हैं कि-
- Maxico को छोड़कर
- उत्तरी अमेरिका,
- संपूर्ण यूरोप तथा
- ऑस्ट्रेलिया वास्तव में ग्लोबल नॉर्थ के देश है
NOTE- यदि हम ध्यान से देखते हैं तो धार्मिक विभाजन के आधार पर संपूर्ण "ग्लोबल नॉर्थ" वास्तव में ईसा#ई देश है।
- चित्र के माध्यम से ही संपूर्ण दक्षिण अमेरिका,
- मेक्सिको,
- मध्य अमेरिका के सात (07) देश,
- संपूर्ण अफ्रीका तथा
- संपूर्ण एशिया ग्लोबल साउथ के देश है।
यहां (Global South ) पर चार (04) देश प्रमुख रूप से सामने आते हैं -
- प्रथम ब्राज़ील,
- द्वितीय साउथ अफ्रीका,
- तृतीय चीन तथा
- चतुर्थ भारत।
Note-
अब प्रमुख रूप से एक देश की बात करते हैं जिसका नाम रूस / Russia है।
- नॉर्थ अमेरिका एवं यूरोप इसको अपना भाग मानते नहीं।
- यूरोप रूस को एशिया का देश मानता है क्योंकि दो तिहाई भौगोलिक क्षेत्र एशिया में है लेकिन रूस अपने आप को राजनीतिक दृष्टिकोण के साथ यूरोप में रखता है
- परिणाम स्वरूप रूस की स्थिति मध्य की हो गई है जिसमें असमंजस है कि रूस को कहां रखा जाए। इसका
- साधारण से समाधान यह है कि रूस इस बात की चिंता करता नहीं, और
- हम "ग्लोबल साउथ" के देश उसको नॉर्थ में रखकर वास्तव में अपने प्रतिद्वंदी का एक प्रतिस्पर्धी सृजन कर रहे हैं।
यहां मुख्य विभाजन का आधार-
- आर्थिक, तथा
- उसके आधार पर राजनीतिक शक्ति का सृजन है।
- “ग्लोबल नॉर्थ” आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक रूप से कहीं अधिक संपन्न क्षेत्र है
- जिसकी तुलना में "ग्लोबल साउथ" संघर्ष की स्थिति में है
- लेकिन यहां “रीड की हड्डीमेरुदंड/Backbone” के रूप में दो (02) देश चीन और भारत कार्यरत है,
- लेकिन, समस्या यह है कि दोनों इस समय एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी है
- क्योंकि चीन साम्यवादी/Communist विचारधारा का एक देश है जो संपूर्ण विश्व पर अब अपना प्रभुत स्थापित करना चाहते हैं।
वास्तव में वह इस दृष्टिकोण के साथ इस वैश्विक संतुलन को देखता है जिस दृष्टिकोण से ग्लोबल नॉर्थ ने वैश्विक संतुलन को देखा और अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
ऐसी स्थिति में अब कुल मिलाकर एक देश शेष बचता है जिसका नाम भारत है और भारत के प्रधानमंत्री इस समय "ग्लोबल साउथ के पांच देशों " की यात्रा पर हैं तो अब आइये इसकी विवेचना करते हैं।
भारत के प्रधानमंत्री 2 जुलाई से 9 जुलाई के मध्य ऊपर दिए गए चित्र में पांच देशों की यात्रा पर है जहां यात्रा का प्रारंभ-
- घाना (Ghana) देश से होकर
- त्रिनिडाड-&-टोबैगो/Trinidad -&- Tobago
- अर्जेंटीना/Argentina,
- ब्राज़ील/ Brazil
- नामीबिया/ Namibia से होते हुए पुनः भारत पहुंचेंगे।
भारत तथा भारत के प्रधानमंत्री एक लंबे समय से ग्लोबल साउथ को अपनी विदेश नीति तथा कूटनीति में निरंतर उल्लेखित करते रहे है।
यह जनवरी 2023 का महीना था जब प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री ने "ग्लोबल साउथ" शब्दावली का उल्लेख करते हुए इसको "दक्षिण" शब्द से संबोधित किया।
इसी क्रम में 17/11/2023 को प्रधानमंत्री ने "Global South Centre of Excellence" का उद्घाटन किया। यह अपने आप में भारत की ओर से उठाए गयी एक समावेशी तथा सशक्त पहल थी जिसने वैश्विक मंच पर ग्लोबल साउथ को एक पहचान दी।
केंद्र का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री कहते हैं कि, "भौगोलिक रूप से ग्लोबल साउथ का एक इतिहास रहा है"।
इसी क्रम में वर्ष 2023 के G-20 सम्मेलन में अफ्रीकन संघ/African Union को भारत द्वारा G-20 में प्रवेश दिलवाया गया
वास्तव में -
- "ग्लोबल साउथ" को शक्तिशाली बनाना यह उस दूसरे उपाय/ प्रकल्प का भाग है
- जहां पर वैश्विक कूटनीतिक संतुलन में संसाधनों को केंद्रीकरण से विकेंद्रीकरण की ओर ले जाना है
- जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक राजनीति में नवीन शक्तियों का उदय होगा, और
- वह अपनी शक्ति सामर्थ के अनुसार संसाधनों के लिए संघर्ष करना प्रारंभ करेंगे।
- अंततः परिणाम वैश्विक पटल पर संसाधनों का विकेंद्रीकरण भारत के प्रतिद्वंदियों को क्षीण/ कमजोर करने का कार्य करेगा, और
- जब ऐसा होता है तो भारत स्वत: शक्तिशाली बनकर उभरता है, क्योंकि
- हमने कभी भी आवश्यकता से अधिक, शोषण के माध्यम से, प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए संसाधनों का केंद्रीकरण नहीं किया है।
👉Why is there conflict in the "Middle East" !! Reason of Right now war !! Implication of US, RUSSSIA & CHINA in West Asia Middle East. Click here....
भारत का राजनीतिक दर्शन -
- सदैव “वसुदेव कुटुंबकम” का रहा
- इसी का अनुसरण करते हुए हमने प्रत्येक आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक रूप से दुर्बल देश का सशक्तिकरण किया इतिहास इसका प्रत्यक्ष दर्शी है
- भारत के विचार को कॉविड के समय में भी विश्व ने देखा जब 140 से अधिक देशों को निशुल्क औषधि सहायता तथा कॉविड वैक्सीन (टीका)/ COVID VACCINE उपलब्ध करवाई गई
- जिसका उल्लेख अपने कल रात के धन्यवाद प्रस्ताव में Trinidad -& Tobago कि प्रधानमंत्री “श्रीमती कमला प्रसाद बिसेसर” ने भी किया।
निष्कर्ष-
अपने कल रात के संबोधन में Trinidad -& Tobago की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने एक “मुख्य शब्द वाक्य” कहा कि,
-“भारत अन्य देश से संबंध उनकी मांग के आधार पर स्थापित करता है।“-
अर्थात भारत की प्राथमिकता में उस देश का विकास केंद्र रूपी विषय होता है। जैसा कि मैंने कहा यह पुनः "वसुधैव कुटुंबकम" की ही ज्ञान मीमांसा है जहां उस देश की मांग के आधार पर वहां की आर्थिक एवं सामाजिक विविधता को समझते हुए भारत अपने राजनैतिक एवं कूटनीतिक संबंध स्थापित करता है।
इसी का परिणाम है कि-
- संपूर्ण वैश्विक मंच पर भारत की स्वीकार्यता एक विशिष्ट समावेशी तथा सकारात्मक सोच के साथ की जाती है
- जहां प्रत्येक देश आंख बंद करके भारत के शब्द तथा उनके पीछे के विचार को आत्मसात करते हुए विश्वास करता है।
एक बार पुन इस विचार को दोहराते हुए कि, -
- “संसाधनों का विकेंद्रीकरण ही वास्तव में भारत का सशक्तिकरण है”-
ग्लोबल साउथ वैश्विक मंच पर भारत की स्वीकार्यता को और प्रमुख रूप से बल देता है तथा भारत भी ग्लोबल साउथ के माध्यम से संसाधन विकेंद्रीकरण को सुनिश्चित करते हुए वैश्विक वाद-विवाद तथा असंतुलन की स्थिति को संतुलित कर विश्व में अधिक शांति स्थापित करने का प्रयास निरंतर करता रहेगा।
लेकिन, इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के साथ किसी प्रकार का समझौता करने की स्थिति में रहेगा हम ऐसा अनेक उदाहरण के माध्यम से देख चुके हैं जहां भारत ने, कम से कम पिछले 11 वर्षों में तो, अपने राष्ट्रीय हितों के साथ किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया है।
किसी अन्य देश की मांग के आधार पर संबंधों को स्थापित करना अपने राष्ट्रीय हित के साथ समझौता नहीं अपितु एक विविध देश के पास जो व्यापार, सामाजिक तथा राजनीतिक अवसर उपलब्ध रहते हैं उनका प्राथमिकता के आधार पर उपयोग करना होता है।
इस आशा के साथ कि प्रधानमंत्री का यह विदेशी दौरा भी सफल रहेगा ग्लोबल साउथ भारत की भविष्य राजनीति के लिए एक इस्पात का स्तंभ है हमें इस पर निरंतर तथा सतत कार्य करते रहने की आवश्यकता है।
धन्यवाद।
Comments